धमाके के बाद
ब्रजेश कानूनगो
यह जो हाथ गिरा है
आँगन में अभी-अभी
वही हाथ है
जो घंटी बजाने के बाद
दे जाता है दूध की कुछ बोतलें
हरी सब्जी दे जाता है
तराजू में तौलकर प्रतिदिन
अखबार को चुपचाप खिसकाकर
पहुँचा देता है हम तक
दुनिया की घटनाएँ
यह वही हिस्सा है शरीर का
उडेल देता है जो ममता
बढा देता है हौंसला परेशानियों के समय
तपती दोपहर में यही बढाता है
एक गिलास ठंडा पानी हमारी ओर
कल ही तो खोद रहा था यह पहाड
बो रहा था बीज खेतों में
घूम रहे थे पहिए इसी की मदद से
पहचाना जा सकता है धुन्धलके में भी
जीवन से अलग कर दिए गए
हमारे इस हिस्से को।
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