Saturday, June 30, 2012

सोयाबीन की फसल


कविता
सोयाबीन की फसल
ब्रजेश कानूनगो

धरती के आँगन में
उम्मीद के कण बिखेरने के बाद
बादलों की तरह आती जाती है चिन्ताएँ

बंगाल की खाडी से उठा चक्रवात
छत्तीसगढ को ही भिगोकर लौट जाए कहीं
उडीसा में बना कम दबाव
हवा हो जाये मालवा तक आते आते

अरब सागर की मेहरबानी से
फट पडे आसमान
बरस जाए प्रलय का पानी
सपनो की नई बस्ती पर
तो क्या होगा सोयाबीन की फसल का

नष्ट करदे आतंकी इल्लियाँ सोयाबीन के परिवार को

सूरज की चमक और आकाश के अंधेरो के साथ
बदलते है हरिया किसान के चेहरे के रंग

बडा ही जीवट वाला है
मौसम के हर मिजाज मे
पिता की तरह पालता है अपनी फसल को

सोयाबीन नही
खुशियों की फसल उगाता है
धरती का  बेटा 

ब्रजेश कानूनगो
503,गोयल रिजेंसी,चमेली पार्क, कनाडिया रोड,इन्दौर-18 

Saturday, June 16, 2012

नक्शे में कैलिफोर्निया खोजता पिता


नक्शे में कैलिफोर्निया खोजता पिता

चालीस डिग्री अक्षांश और
एक सौ दस डिग्री देशांतर के बीच में
यहाँ इधर,थोडा हटकर,बस यहीं
यही है कैलिफोर्निया
ज्यादा दूर तो दिखाई नही देता नक्षे में!

उडने के छत्तीस घंटे बाद
फोन किया था बेटी ने
बहुत दूर है कैलिफोर्निया

ईंधन लेने के लिए
यहाँ उतरा होगा विमान
बेटी ने बिताए होंगे
पाँच घंटे अकेले

यहाँ से बदलना पडता है विमान
एक बैग भर ही तो था पास में
सामान तो शिफ्ट कर ही देते होंगे एयरवेज वाले

जरा देखें तो
कैसी है जलवायु कैलिफोर्निया की
बारिश होती है यहाँ कितनी
कितना रहता है सर्दियों में
न्यूनतम तापमान

समुद्री हवाएँ कब बहती हैं इस ओर
तपती तो होगी गर्मियों में धरती
मौसम होते भी हैं या नही
कैलिफोर्निया में

कौनसी फसलें बोते हैं कैलिफोर्निया के किसान
मिल ही जाता होगा बाजार में
गेहूँ और चावल

‘जितने कष्ट कंटकों में है...’
दसवीं कक्षा में पढी कविता की अनुगूंज में
घुल रही है बेटी की आवाज
नक्षे की रेखाओं से होता हुआ
पहुँच रहा है पिता का हाथ
बेटी के माथे तक !

ब्रजेश कानूनगो

Wednesday, June 6, 2012

बरसात में याद


बरसात में याद
ब्रजेश कानूनगो

बरसात और याद का बड़ा गहरा संबंध रहा है। बरसात आतीहै तो बहुत सी भूली हुई बातें याद आने लगती हैं।प्रथम दृष्टया लगता है कि बरसात और याद के बीच बड़ा कोमल सा रोमांटिक संबंध है ,पर ऐसा नही है। बरसात को लेकर हम गहरे पूर्वाग्रहों के शिकार हो गए हैं जो हमारे कवियों तथा साहित्यकारों ने हम पर थोप दिए हैं।

अनेक गीत तथा कहानियाँ बरसात से शुरू होकर बरसात पर समाप्त होती रहीं हैं। विरहणी नायिका बरसात के आते ही इतनी प्रेममय हो जाती है और यादों में इस कदर जलने लगती है कि बकौल पंडित हरिशंकर परसाई,मोहल्ले का तापमान बढ़ जाता है,नायिका मन की तड़प और प्यार की गरमाहट से
इतनी भर उठती है कि रोटियाँ सिर्फ बेलना भर रह जातीं है,लोग चूल्हा जलाना भूलकर विरहणी की देह पर रोटियाँ सेकने लगते हैं।
बरसात और याद के इस मार्मिक रिश्ते को प्रगाढ़ बनाने में हमारे फिल्मी गीतकारों ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी है।हम बरसात का संबंध प्रिय और प्रियतम तक ही समेटकर रह जाते हैं लेकिन भावनाओं के इस दायरे से बाहर निकलकर व्यावहारिकता के धरातल पर बरसात का जायजा लिया जाए तो हम पाते हैं कि बरसात एक रोमांचकारी मौसम भर नहीं है, बल्कि एक ऐसा झटका है जिससे हमें बहुत सी भूली हुई बातें याद आना प्रारंभ हो जाती है। छतें टपकती हैं तो हमें ठेकेदार की याद आने लगती है,उपचार के बावजूद छतों का टपकना नहीं रुकता।
बहते पानी की विशेषता होती है कि प्रवाह के मार्ग में बाधा आनेपर या तो वह फैल जाता है अथवा यदि वह छत पर हुआ तो टपक पड़ता है। फैलते हुए पानी को तो कलेकटर  महोदय अपने पूरे दल-बल के  साथ समेटने में  जुट जाते हैं किंतु टपकते पानी से तो स्वयं को ही जूझना होता है। लगातार टपकने के बाद मौसम खुलते ही लोग बाजार की ओर दौड़ पड़ते हैं तथा दुआ-सलाम के बाद पहला प्रश्न होता है-टपक रही है क्या ? हाँ, टपक रही है। क्या आपकी भी छत टपक रही है ? जी हाँ,वाटर प्रुफ सीमेंट ही लेने जा रहा हूँ।

लोग छतें बनवाते वक्त उतना उतना परेशान नहीं होते जितना उनके  टपकने पर होते हैं।कोई सीमेंट का राला कर रहा है तो कोई गुड़ और गोबर की पुताई करने लगता है।जितनी टपकती छतें ,उतने ही सलाहाकार तथा उतने ही इलाज,पर छत को टपकना होता है और वह टपकती ही है,यह एक ला इलाज मर्ज है जिसका कोई विश्वसनीय उपचार नहीं होता। हमारे मित्र ने तो परेशान होकर अंततः अपने कमरे की साइज का रेग्जीन खरीद लिया है। अब वे पलंग के  ऊपर तथा छत के  नीचे तंबू तानते हैं और चैन की नींद सोते हैं।पानी की टपकती बूंदें जब प्लास्टिक की अंतर छत पर गिर कर  टप-टप की मधुर लोरियाँ सुनाती हैं उन्हे टप से गहरी नींद आजाती है।

बहरहाल, छतें भले ही टपकती रहें,बरसात का होना जीवन का होना है। बरसात का आना हमारी स्मृति के लिए बेहद जरूरी है।बरसात एक ऐसा झटका है जो भटके  हुए लोगों को राह पर ले आता है।वह चाहे साधारण नागरिक हो या प्रशासन अथवा सरकार , इसका लगते रहना पूरी समाज व्यवस्था के  लिए लाभकारी होता है।
काश !बरसात के कारणों पर कुल्हाड़ी चलाने वालों को यह बात समझ में आ सके

ब्रजेश कानूनगो
503 गोयल रिजेंसी,चमेली पार्क ,कनाडिया रोड, इंदौर-18