Saturday, January 26, 2013

झाँकी प्रबंधन




झाँकी प्रबंधन
ब्रजेश कानूनगो


झाँकियों की परंपरा हमारे यहाँ पुरानी है। परंपरागत चित्रों और केलेंडरों मे राम दरबार और गोपाल कृष्ण  की रासलीला या महाभारत में अर्जुन को सारथी कृष्ण  द्वारा कर्मयोग का पाठ पढ़ाती झाँकियाँ बहुत लोकप्रिय रहीं हैं। पर्वों उत्सवों पर चल-समारोह के  रूप में झाँकियाँ निकाली जाती रहीं हैं। गणतंत्र दिवस हो या गणेशोत्सव, नागपंचमी हो या नवरात्रि, झाँकियों की परंपरा कायम है। लेकिन अब इसका परिष्कार हो गया है। झाँकियाँ अब जमाई जाने लगीं हैं। प्रभावशाली व्यक्तित्व के  लिए झाँकी जमाना एक अत्यन्त आवश्यक गुण हो गया है। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि कोई कितनी सफलता के  साथ अपनी झाँकी जमाने की सामर्थ्य रखता है।
किसी राजनीतिक दल का कोई नेता शहर मे अवतरित हुआ हो अथवा स्थानीय युवा हृदय सम्राट को हाईकमान ने कोई जिम्मेदारी सौंप दी हो प्रतिष्ठानुरूप झाँकी जमाना अत्यंत आवश्यक हो जाता है। नागरिकों को भले ही कष्ट हो,यातायात व्यवस्था चौपट हो जाए किन्तु रैली निकल रही है-झाँकी जम रही है। परमानंद पार्षद का जन्मदिन हो तो जरा मुहल्ले की फिजा पर गौर फरमाइए,चौराहों-नुक्कड़ों पर छोटे-बड़े अनुयायी बड़े-बड़े -पोस्टरों होर्डिंगोँ   में उन्हे बधाई देते हुए न सिर्फ  उनकी बल्कि स्वयं की भी झाँकी जमाते हुए दिखाई देते हैं। झाँकी जमाने को शब्दों मे परिभाषित करना उतना ही कठिन है जितना 'प्रेम' अथवा 'समर्पण' को परिभाषित करना। इसे सिर्फ  महसूस किया जा सकता है।
 कवि सम्मेलनों के  संचालकों से जरा चुपके  से पूछिए-'बंधु, कैसा  चल रहा है,आजकल?'   बड़ी ही रहस्यमयी मुस्कान के  साथ कहेंगे-'बस यूहीं मित्रों की झाँकियाँ जमा रहें हैं, पिछले कई दिनों से पत्र आ रहे थे- अबकी बार ध्यान रखना, सो मित्रता तो निभाना ही है,आज हम उनकी यहाँ जमाएँगे,कल वे वहाँ हमारी प्रतिष्ठित करवा देंगें।

दफ्तर  के बड़े बाबू की सास का देहांत हो जाता है तो एकादशा कर्म में सम्मिलित होने के  लिए वे अपने साहब से अनुरोध करते हैं कि- 'हुजूर,ऐसी झाँकी जमाइए कि हम साले-सालियों को साँत्वना भी दे आएँ और दफ्तर के जरूरी कागजात भी मुख्यालय समय पर पहुँच जाएँ।' और सचमुच हुजूर बड़े बाबू की झाँकी जमवा देते हैं क्योँकि बड़े बाबू भी वक्त –बेवक्त  हुजूर की झाँकियाँ जमवाते रहते हैं।

झाँकी जमाना सर्वव्यापी  क्रिया  है। जिसकी जम जाती है वह परम आनंद को प्राप्त होता है। परमानंद हो जाता है। सेठ परमानंद अपने कर सलाहकार और मुनीमजी को आँकड़ों की ऐसी झाँकी जमाने को कहते हैं कि आयकर एवं अन्य टैक्सोँ  की रकम कम से कम अदा करनी पडे। ठाकुर  परमानन्द सिंह ऐसी राजनैतिक झाँकी जमाना चाहते हैं कि अगले चुनाव में पार्टी की उम्मीदवारी का टिकट उन्हे ही मिले। पंडित परमानन्द कुछ ऐसी झाँकी जमवाना चाहते हैं कि डूब में आने वाले अपने खेत का अधिक से अधिक मुआवजा प्राप्त कर सके । स्वामी परमानंद सरस्वती ने ऐसी झाँकी जमाई कि आश्रम के आसपास की सैंकडों एकड़ सरकारी भूमि उनके  स्वामित्व में आ गई। प्रोफेसर  परमानंद'परम'  शासकीय पुरस्कार प्राप्ति के लिए झाँकी जमानें में व्यस्त हैं तो उस्ताद परमानंद 'सुरसागर'  फैलोशिप के लिए झाँकी जमाने का प्रयास कर रहे हैं। मास्टर परमानंद स्थानान्तर रुकवाने के लिए झाँकी जमा रहा है तो बाबू परमानंद स्थानान्तर करवाने के लिए।
बहरहाल,  झाँकी जमाना सफलता का एक नया मापदंड बन गया है। इसके  व्यापक महत्व को देखते हुए, इस कला के  व्यवस्थित अध्ययन की दृष्टि से, अब इसे एक विषय के रूप में प्रबंधन के पाठ्यक्रम  में अविलम्ब सम्मिलित कर लिया जाना चाहिए।


ब्रजेश कानूनगो
503 ,गोयल रिजेंसी, चमेली पार्क, कनाडिया रोड, इंदौर-18


Friday, January 25, 2013

रेडियो की स्मृति




कविता
रेडियो की स्मृति
ब्रजेश कानूनगो

गुम हो गए हैं रेडियो इन दिनों
बेगम अख्तर और तलत मेहमूद की आवाज की तरह

कबाड मे पडे रेडियो का इतिहास जानकर
फैल जाती है छोटे बच्चे की आँखें

न जाने क्या सुनते रहते हैं
छोटे से डिब्बे से कान सटाए चौधरी काका
जैसे सुन रहा हो नेताजी का सन्देश
आजाद हिन्द फौज का कोई सिपाही

स्मृति मे सुनाई पडता है
पायदानों पर चढता
अमीन सयानी का बिगुल
न जाने किस तिजोरी में कैद है
देवकीनन्दन पांडे की कलदार खनक
हॉकियों पर सवार होकर
मैदान की यात्रा नही करवाते अब जसदेव सिंह

स्टूडियो में गूंजकर रह जाते हैं
फसलों के बचाव के तरीके
माइक्रोफोन को सुनाकर चला आता है कविता
अपने समय का महत्वपूर्ण कवि
सारंगी रोती रहती है अकेली
कोई नही पोंछ्ता उसके आँसू   

याद आता है रेडियो
सुनसान देवालय की तरह
मुख्य मन्दिर मे प्रवेश पाना
जब सम्भव नही होता आसानी से
और तब आता है याद
जब मारा गया हो बडा आदमी
वित्त मंत्री देश का भविष्य
निश्चित करने वाले हों संसद के सामनें
परिणाम निकलने वाला हो दान किए अधिकारों की संख्या का
धुएँ के बवंडर के बीच बिछ गईं हों लाशें
फैंकी जाने वाली हो क्रिकेट के घमासान में फैसलेवाली अंतिम गेन्द
और निकल जाए प्राण टेलीविजन के
सूख जाए तारों में दौडता हुआ रक्त
तब आता है याद
कबाड में पडा बैटरी से चलनेवाला
पुराना रेडियो

याद आती है जैसे वर्षों पुरानी स्मृति
जब युवा पिता
इमरती से भरा दौना लिए
दफ्तर से घर लौटते थे।

ब्रजेश कानूनगो
503,गोयल,रिजेंसी,चमेली पार्क,कनाडिया रोड,इन्दौर-18



   

Tuesday, January 8, 2013

बाल नोचने की बेला


बाल नोचने की बेला
ब्रजेश कानूनगो

नेताओं के ताजा बयानों को लेकर एक समाचार चैनल पर बडी जोरदार बहस चल रही थी। एक घंटे के उत्तेजक विमर्श के बाद एंकर का अंतिम जुमला बहुत दिलचस्प रहा। अपने ही कार्यक्रम की बहस और नेताओं के बयानों पर घटिया तर्कों से असंतुष्ट होते हुए उन्होने पेनल के एक गंजे विचारक को सम्बोधित करते हुए कहा.. आप तो श्रीमान चाहते हुए भी अपने बाल नोच नही सकते लेकिन शो देख रहे दर्शक चाहें तो अपने बाल नोच सकते हैं।

ज्वलंत मुद्दों पर टीवी पर होनेवाली ज्यादातर बहसों में इन दिनों यही हो रहा है। ईमानदार एंकर जानते हैं कि होना-जाना कुछ नही है। चैनलों को तो अपना पेट भरना ही है। उन्हे तो ऐसी चुइंगमों की तलाश सदा बनी रहती है,जिसे वह चौबीसों घंटे चबाते रह सकें। संत हों, नेताजी हों, मंत्रीजी या पार्टी अध्यक्ष अथवा कोई राजनीतिक प्रवक्ता रहा हो, मीडिया की क्षुधा  को शांत करने की ये लोग भरपूर कोशिश करते रहते हैं।

जहाँ तक दर्शक या आम आदमी की बात है,वह तो हमेशा से भ्रमित बना रहा है। अपने-अपने पक्ष के समर्थन में जो तर्क या कुतर्क उसके सामने रखे जाते हैं वह लगभग सब से संतुष्ट होता दिखाई देता है। ‘न हम हारे ,न तुम जीते’ की तर्ज पर उसके मन में कोई मनवांछित धुन गूंजने लग जाती है। लक्ष्मण रेखा लांघने के बाद सीता हरण की बात भी उसे कुछ-कुछ ठीक लगती है तो पुरुषों के लिए कोई मर्यादा रेखा न बनाए जाने के तर्क से भी वह सहमत होने का प्रयास करता है। बलात्कारी को भाई बनाकर अपने आपको बचा ले जाने की कूटनीति के सुझाव पर वह भौचक्का रह जाता है ,वहीं बचपन से संस्कारों के बीज बोने का विचार उसे भाने लगता है। ‘लिव-इन’  और ‘सहवास’ की नैसर्गिक आवश्यकता के नेताई बयानों में वह वैज्ञानिकता खोजने लगता है।

बहसों के ये लाइव शो बडी समस्याएँ खडी कर रहे हैं। इस महान देश की गौरवशाली सांस्कृतिक परम्पराओं के बीच इन दिनों महान बयानों की कई पवित्र धाराएँ चारों ओर प्रवाहित होती दिखाई दे रही हैं, किस धारा का आचमन करें लोग। मुश्किल इतनी है कि कुछ समझ नही आ रहा है..  अपने बाल नोचने को मन करता है ।

ब्रजेश कानूनगो
503,गोयल रिजेंसी, चमेली पार्क,कनाडिया रोड, इन्दौर-18