Thursday, July 23, 2015

हंगामे का संस्कार


हंगामे का संस्कार
ब्रजेश कानूनगो

भारी बारिश के बावजूद साधुरामजी अचानक बारह ताड़ी की छतरी थामें मेरे घर चले आये. मुझे थोड़ा अचरज भी हुआ. ऐसे खराब मौसम में भले ही कितना ही जरूरी काम क्यों न हो वे घर से नहीं निकलते हैं.
‘क्या बात है साधुरामजी ! इतनी बारिश में यहाँ ?  सब ठीक तो है?’ मैंने दरवाजा खोलते हुए पूछा.
‘सोंचा है आज पूरा दिन आपके साथ टीवी देखेंगे. अकेले–अकेले संसद की कारवाही देखने में मजा नहीं आयेगा.’ अपनी छतरी को सुखाने के लिए वरांडे में फैलाते हुए वे बोले.
‘अरे वाह! यह तो बड़ा अच्छा किया आपनें. मौसम भी बहुत अच्छा है. चाय-पकौड़े और संसद का सत्र. खूब मजा आयेगा. आइये-आइये.’ मैंने सोफे की ओर इशारा करते हुए उन्हें बैठने का आग्रह किया.
‘संसद की कारवाही भी पकौड़ों के आनंद से कम नहीं होती साधुरामजी.’ मैंने चुहुल की. ‘कैसे?’ उन्होंने मुस्कुराते हुए पूछा.  
‘मानसून सत्र की विशेषता ही यह होती है साधुरामजी कि सदन के बाहर बारिश की ठंडी फुहारें होती हैं और भीतर गरमा गर्म बहसों का पकौड़ों की तरह भीतर बैठे सदस्य लुत्फ़ उठाते रहते हैं.’ मैंने कहा.
टीवी चालू किया तो देखा जबरदस्त हंगामें के बाद अध्यक्ष महोदय ने नें सदन की कारवाही आधे घंटे के लिए स्थगित कर दी थी.
‘इस बार थोड़ा मुश्किल ही होगा सदन का सुचारू रूप से चलना.’ साधुरामजी ने आशंका व्यक्त की.
‘इस बार क्यों, सदन का चलना तो हर बार ही मुश्किल होता है. जब ये सत्ता में थे तब भी विपक्ष ने चलने नहीं दिया था. अब ये विपक्ष में हैं तो भी यही होगा, कौन सी नई बात है.’ मैंने कहा.
‘पर इस बार ललितगेट, व्यापम जैसे ज्वलंत मुद्दे हैं.’ वे बोले.
‘तब भी कोयला, स्पेक्ट्रम आदि होते थे. बस नाम ही तो बदला है साधुरामजी. गठबंधन बदला है.  नाम बदलने से कुछ नहीं होता, सब पहले जैसा ही होता रहेगा.’ मैं निराशा में बोलता गया.
‘क्या करें भाई ! यही प्रजातंत्र है. किसी के माथे पर नहीं लिखा होता कि कोई  ठीक काम करेगा. अब देखिये अब उस संस्थान का नाम भी बदला जा रहा है.’ साधुरामजी आज मुझ से थोड़े सहमत दिखाई दिए.
‘केंद्र सरकार ने भी तो ऐसा ही कुछ किया था ‘योजना आयोग’ के साथ. वह भी अब ‘नीति आयोग’ हो गया है. अब देखिये आयोग-आयोग भर ही दिखाई देता है. पहले योजना रुकी रहती थी अब नीति लापता है.’ साधुरामजी ने सरकार पर तंज करते हुए कहा.
‘व्यापम की बिगड़ी छवि सुधारने के लिए उसका नाम ‘भरती एवं प्रवेश परीक्षा मंडल’ कर देने से यह सुनिश्चित नहीं हो जाता कि अब वहां गडबडी नहीं होंगी. कपडे बदल लेने से आँखों का रंग नहीं बदला करता.’ मैंने अपनी बात बढाई.
‘बिलकुल तुम ठीक कहते हो. नागनाथ कह लो या सांपनाथ, दोनों एक ही हैं. दोनों में से कोई भी डस ले हमारा मरना स्वाभाविक ही है.’ साधुरामजी मुस्कुराए.
‘दरअसल, व्यापम संस्था नहीं, संस्कार है साधुरामजी! जैसे कभी कहा जाता था कि ईश्वर कण-कण में व्याप्त है ,उसी तरह व्यापम तंत्र की रग-रग में समाविष्ट हो गया है. व्यापम में हम इतनें संस्कारित हो चुके हैं कि लगता है उसके बगैर एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा जा सकता. कुछ पाने के लिए व्यापम स्नान के बाद ही फल की आकांक्षा की जा सकती है अब.’ मेरा गुबार निकल रहा था.
‘ठीक है भाई, इतना गुस्सा भी ठीक नहीं. तुम्हारा ही बीपी बढेगा इससे, कहीं अस्पताल न जाना पड़ जाए.’ साधुरामजी ने वातावरण को थोड़ा सहज बनाना चाहा.
‘और वहां किसी व्यापम हितग्राही डाक्टर से सामना हो जाए तो और भी मुश्किल हो जायेगी.’ मैं हंसते हुए कहने लगा.‘ खैर, जाने दीजिये किसी ने कहा भी है ‘नाम में क्या रखा है’ कुछ भी रख लो, जयकिशन नाम बदलकर जैकी हो जाता है तो उसकी नाक छोटी नहीं हो जाती. बहुत समय हो गया है आप भी साधुरामजी ही बने हुए हैं अब तक, आपको भी अब ग्लोबलाइजेशन के दौर में ‘एस राम’ कहूं तो कोई आपत्ति तो नहीं है आपको?’
‘चलो अब टीवी लगाओ, शायद संसद की कारवाही फिर शुरू हो गयी होगी.’ साधुरामजी ने बात बदलते हुए टीवी की तरफ इशारा किया तो मैंने रिमोट का बटन दबा दिया. देखा कि संसद में फिर हंगामा हो गया था , अध्यक्ष ने दोबारा आधे घंटे के लिए कारवाही स्थगित कर दी थी.


ब्रजेश कानूनगो
503,गोयल रिजेंसी,चमेली पार्क, कनाडिया रोड, इंदौर-452018     

Monday, July 6, 2015

डिजिटल के भरोसे में


डिजिटल के भरोसे में 
ब्रजेश कानूनगो  

साधुरामजी इन दिनों बहुत खुश हैं. बायपास पर बनी नई-नई टाउनशिप में आये थे तो अक्सर बहुत दुखी रहते थे. पुराने शहर और दोस्तों से दूर होकर उनका मन और तन कमजोर पड़ता जा रहा था. लेकिन जब से जन्मदिन पर अमेरिका में बसे ग्रीनकार्ड धारी सुपुत्र ने एक टेबलेट ऑनलाइन उनको भेंट कर दिया है उनके सारे दुःख दूर हो गए हैं. उनका अकेलापन देश के बुरे दिनों की तरह चला गया है . पूरी दुनिया उनकी हथेलियों में सिमट आईं है. उँगलियो के इशारे पर मनचाहे वातावरण, दोस्तों के बीच दिन भर बतियाते रहते हैं.

‘साधुरामजी आजकल घूमने के लिए आप मुझे लेने नहीं आते, बल्कि मुझे आपके घर आना पड़ता है..कहाँ व्यस्त रहते हैं?’ रोज की तरह शाम को जब हम टहलने निकले तो मैंने चर्चा शुरू करते हुए कहा.
‘अरे भाई , इन दिनों एक कविता कार्यशाला में नवलेखकों को लिखने के सूत्र समझाने में लगा रहता हूँ. छोड़ते ही नहीं देर तक. आप लेने आते हैं तब पता चलता है कि शाम हो गयी है, सैर को जाना है.’ साधुरामजी ने मुस्कुराते हुए कहा.
‘लेकिन आप तो अपने फ्लेट से निकलते ही नहीं और नहीं किसी को आपके यहाँ आते-जाते देखा है, तब ‘कविता-कार्यशाला’ की बात कुछ समझ में नहीं आई!’ मैंने जिज्ञासा व्यक्त की.
‘ये नई चीज है. ओन लाइन कविता कार्यशाला है. वाट्स एप समूह पर चलती है. कविता पर बात होती है, रचना प्रक्रिया से लेकर साहित्य के सरोकारों तक बात होती है यहाँ. इसी में लगा रहता हूँ. तुम भी इस के सदस्य बन जाओ.. मैं एडमिन को तुम्हारा नंबर भेजता हूँ.’ साधुरामजी ने उत्साह से कहा.
‘नहीं-नहीं!  साधुरामजी, मैं तो वैसे ही मस्त हूँ. अखबार और किताबें ही बहुत हैं मेरे लिए. मुझसे यह सब नहीं होगा.’ अपनी अरुचि दर्शाई तो उन्होंने मेरे पिछड़ेपन पर हिकारत से मुंह बिचकाया और बोले- ‘अरे भैया जरा जमाने के साथ चलो..ऐसे तो वहीं के वहीं रह जाओगे..देखो देश ‘डिजिटल इंडिया’ बनने की राह पर चल पडा है और तुम अभी तक पुरानी पीढी के मोबाइल को कान से लगाए बैठे हो. स्मार्ट बनों और स्मार्ट फोन और टेबलेट के रास्ते अपना विकास करो..अपने और देश के सपने पूरे करो..इसी रास्ते से होकर खुशहाली आयेगी..हम विकसित देश की पंक्ति में आ खड़े होंगे !’
‘क्या होगा डिजिटल हो जाने से ? यह सब जुमले बाजी है बस और कुछ नहीं.’ मैंने कहा तो वे चिढ गए.
‘हर अच्छी चीज का विरोध करने की तुमको आदत हो गयी है. जब हमने सेटेलाईट अंतरिक्ष में भेजा था तब भी तुमने विरोध किया था.अब वही देखो कितनी मदद कर रहा है हमारी. हजार चैनल हैं हमारे घर में. मौसम की जानकारी है. सबको लाभ मिल रहा है.’ साधुरामजी खबरिया चैनल पर आये पीएम के उद्बोधन को दोहराने लगे.
‘हाँ, मैं मानता हूँ मोबाइल क्रान्ति से परिवर्तन आया है, डिजिटल होने से एक छोटे से मोबाइल में पूरा भारत सिमट जाएगा..सरकारी तंत्र आपके इशारों पर काम करने लगेगा...  लेकिन प्रश्न तो करना ही पड़ेंगे साधुरामजी.’ मैंने कहा.
‘करिए ना प्रश्न कौन मना कर रहा है. यह एक ऐसी बात है जिससे चुटकियों में आपकी कठिनाइयां दूर हो जायेगी. अस्पताल में आपको लाइन में नहीं लगना होगा, डॉक्टर आपकी बीमारी की दवाई घर बैठे लिख भेजेगा. किसान को खेती की सारी जानकारियाँ खेत खलिहान में ही उपलब्ध हो जायेगी..बीज खाद और तकनीक की जानकारी मिल जायेगी..बहुत सी सुविधाएं मिलेंगी इससे...!’ साधुरामजी टीवी बहस के किसी प्रवक्ता की तरह जोश में बोल रहे थे.
‘साधुरामजी, डिजिटल हो जाने से समय पर बारिश होगी इसकी कोई गारंटी नहीं मिल जाती. मोबाइल लगाने से डॉक्टर अस्पताल में फोन उठा लेगा और गाँव में दवाइयाँ उपलब्ध रहेंगी ही, मुझे विश्वास नहीं हो रहा.’ मैंने आशंका व्यक्त की.
‘भरोसा करना सीखो भाई ! दुनिया हम पर भरोसा कर रही है तुम भी करो ज़रा.’ उन्होंने आश्वस्त करना चाहा.
मैं दुनिया के साथ हो गया. पूरे भरोसे के साथ घर लौटकर बत्ती का स्विच दबाया, बिजली गुल थी. शिकायत दर्ज करने के लिए फोन उठाया..वह शवासन में लीन था . मोबाइल में देखा..सिग्नल शून्य में विलीन हो गए थे. ब्राडबेंड मेरे यहाँ नहीं था.  उम्मीद है साधुरामजी लिंक की मंथर गति से जूझते हुए दुनिया को अपने ड्राइंग रूम में लाने में सफल हो गए होंगे.

ब्रजेश कानूनगो
503, गोयल रिजेंसी,चमेली पार्क, कनाडिया रोड, इंदौर -452018