Saturday, June 30, 2012

सोयाबीन की फसल


कविता
सोयाबीन की फसल
ब्रजेश कानूनगो

धरती के आँगन में
उम्मीद के कण बिखेरने के बाद
बादलों की तरह आती जाती है चिन्ताएँ

बंगाल की खाडी से उठा चक्रवात
छत्तीसगढ को ही भिगोकर लौट जाए कहीं
उडीसा में बना कम दबाव
हवा हो जाये मालवा तक आते आते

अरब सागर की मेहरबानी से
फट पडे आसमान
बरस जाए प्रलय का पानी
सपनो की नई बस्ती पर
तो क्या होगा सोयाबीन की फसल का

नष्ट करदे आतंकी इल्लियाँ सोयाबीन के परिवार को

सूरज की चमक और आकाश के अंधेरो के साथ
बदलते है हरिया किसान के चेहरे के रंग

बडा ही जीवट वाला है
मौसम के हर मिजाज मे
पिता की तरह पालता है अपनी फसल को

सोयाबीन नही
खुशियों की फसल उगाता है
धरती का  बेटा 

ब्रजेश कानूनगो
503,गोयल रिजेंसी,चमेली पार्क, कनाडिया रोड,इन्दौर-18 

1 comment:

  1. सुन्दर कविता , मार्मिक भाव .

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