छुप जाओ कजरी
ब्रजेश कानूनगो
सुन्दरता के तमाम प्रयासों और गहरे सौन्दर्यबोध के
बावजूद
कजरी सौन्दर्य प्रतियोगिता में शामिल नही है
जो जवार के आटे का उबटन चुपडकर
हर रोज बहा आती है देह का मैल
गाँव की ठहरी हुई नदी में
खेत की मुलायम मिट्टी से बालों को धोकर
लकडी की सख्त काँगसी से सहेज कर
गूंथ लेती है सांकल की तरह
और बांध लेती है एक चटक रिबन
ओढनी में लगाती है सुनहरी किनारी
और लहंगे में टाँकती है चमकीले फूल
मिट्टी की दीवार पर खजूर की कूची से
बनाती है तोता,साँतिया और गणेश
आँगन को गोबर से लीपकर
गेरू और खडिया से माण्डना उकेरती है वह
सावधान कजरी
तुम्हे सुन्दरी घोषित करने का षडयंत्र प्रारम्भ
हो गया है
अब किसी भी दिन
विशिष्ठ मिट्टी का आयात होने लग सकता है
गेरू,गोबर और खडिया
किसी बहुराष्ट्रीय कम्पनी के आकर्षक कनस्तरों में
बेचे जा सकते हैं
जवार के आटे से निर्माता बना सकता है साबुन
लकडी की काँगसी का विज्ञापन दूरदर्शन पर आ सकता
है
छुप जाओ कजरी किसी ऐसी जगह
जहाँ सौदागरों की दृष्टि न पहुँचे।
No comments:
Post a Comment