कविता
रेलगाडी के वातानुकूलित डिब्बे में बैठे
लोग
ब्रजेश कानूनगो
दिखाई नही दे रहा उनके
चेहरों पर बिछुडने का दु:ख
कोई खुशी उनकी आंखों में
नही कहीं पहुँचने की
उन्हे चिंता नही है अपनी
सीट के झपट जाने की
रोते हुए बच्चे के लिए
चना-चुरमुरा नही खरीदना पडता उन्हें
पानी नही लाना पडता
उन्हें किसी बुजुर्ग के लिए गाडी से उतरकर
कभी भी मंगवा सकते हैं
वे जरूरत का सामान सीट पर बैठे-बैठे
सुनाई नही दे रहा उन्हे
बाहर की हलचल का शोर
पसीने की बूँदे नहीं रिस
रही उनके माथे से
गोबर और मिट्टी की गन्ध
पहँच नही रही उनके नथुनों तक
गिडगिडाती नही भिखारन
उनके सामने
ढपली बजाता गायक भंग नही
करता उनका एकांत
दिखाई नही दे रही है उन्हें
नीले आकाश में उडते
पक्षियों की कतार
कच्चे रास्ते पर दौडती बैलगाडी
खेतों की हरी चादर और
नदी में नहाते बच्चे
पेड की छाया में सुस्ताते
मजदूर
बारिश के बाद की धूप, दूर
तक फैला इन्द्रधनुष
और गोधूलि में घुलता हुआ
सूरज
गहरे परदों से छनकर
पहुँच रही है उन तक
उजली सुबह,सुनहरी दोपहर
और गुलाबी शाम
जीवन के आसपास दीवारें
खडी करने के बाद
पुस्तकों में खोज रहे
हैं वे
जीवन।
ब्रजेश कानूनगो
503,गोयल रिजेंसी,चमेली
पार्क, कनाडिया रोड, इन्दौर-18
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