लघुकथा
लूट
ब्रजेश
कानूनगो
'पुराने अंखबार की रद्दी
क्या भाव लोगे भैया ?' सडक से गुजरते पुराना सामान खरीदने वाले की आवाज
सुनकर मैडम ने पुकारा ।
'चार रुपये किलो ले लेंगें
मैडम ।' अटालेवाले ने कहा ।
'यह तो बडी लूट है भैया
। बडे शॉपिंग मॉल वाले तो पच्चीस रुपये किलो में खरीद रहें हैं ,और बदले में डिस्काउँट कूपन भी दे रहें हैं ।'
'बहनजी, वहां आपको चार गुना अधिक कीमत का सामान भी तो खरीदना पडता है । हमें तो बच्चे
भी पालना हैं, झूठ नहीं बोलेंगें, एक किलो
की रद्दी पर केवल पचास पैसे बचते हैं । अटालेवाले नें स्पष्ट किया ।
'तो जाने दो भैया, रद्दी नहीं है अभी ।'
शाम को
मैडम पच्चीस किलो पुराने अखबार कार में भरकर एक लीटर पेट्रोल फूंककर बडे शॉपिंग मॉल
में बेच आर्ईं। बदले में चार हजार रुपयों का बहुत सारा सामान खरीद लार्ईं जिसकी अभी
फिलहाल कोई आवश्यकता ही नहीं थी ।
मैडम को
इस बात से कोई लेना देना नहीं था कि अपनी जरूरतों की पूर्ति के लिये अटाले वाले को
उस दिन कितनी अधिक कॉलोनियों में कितनी अधिक
फेरियाँ लगानी पडी थीं ।
दूसरे दिन
किटी पार्टी में अन्य मैडमों को बडे गर्व से उन्होनें बताया कि किस तरह कल उन्होंने
बडा किफायती सौदा किया और रद्दी के भाव बाजार लूट लिया ।
ब्रजेश
कानूनगो
503,गोयल
रिजेंसी,चमेली पार्क,कनाडिया रोड,इन्दौर-18
'अधिक सयानो जो बने, गिरवी धरे लंगोट'
ReplyDeleteयही कर रहे हैं हम - सर्वांग प्रसन्नता, सम्पूर्ण उत्साह और परम गर्व भाव से।