21 अप्रैल 2020 विशेष :
जन्मदिन मुबारक प्रिय 'अधबीच'
वाट्सएप पर चल रहे व्यंग्यकारों के एक समूह पर जब यह सूचना आई कि कल से नईदुनिया का लोकप्रिय दैनिक स्तंभ 'अधबीच' बंद किया जा रहा है तो सभी मित्रों का दिल बैठ सा गया और दिन भर कॉलम को लेकर इसके ऐतिहासिक महत्व और आवश्यकता पर काफी चर्चाएं होती रहीं।
हालांकि यह सूचना एक अप्रैल के दिन आई थी इसलिए थोड़ा असमंजस तो अवश्य था लेकिन विश्वास कर लेने की भरपूर स्मृतियां भी थीं। पूर्व में भी यह स्तंभ कभी स्थगित रहा तो कभी इसका शीर्षक परिवर्तित किया जाता रहा था। कभी 'मध्य' तो कभी 'आठवा सुर' शीर्षक से भी रोचक रचनाएं इसमें प्रकाशित की जाती रहीं। सो अधिकांश लोगों ने विश्वास करके दुख जाहिर किया। और जब पता चला कि यह मात्र 'अप्रैल फूल' की एक चुहल थी तो सबने संतोष की सांस ली।
दरअसल, 21 अप्रैल 1981 के दिन इस लोकप्रिय कॉलम की शुरुआत तत्कालीन संपादक स्व राजेन्द्र माथुर जी की पहल पर हुई थी। इस तरह इस वर्ष 21 अप्रैल को 'अधबीच' कॉलम ने 39 वर्ष पूर्ण कर लिए हैं और चालीसवाँ गौरवशाली वर्ष प्रारम्भ हो रहा है।
जो वरिष्ठ पाठक नईदुनिया को अपने बचपन से पढ़ते आ रहे हैं वे जानते हैं कि नईदुनिया परिवार ने अपने पाठकों को सदैव अपने परिवार का सदस्य माना है। बहुत से तो ऐसे भी हैं जिन्होंने केवल नईदुनिया पढ़ते हुए ही अपनी भाषा को संवारा और और पाठक से धीरे धीरे एक रचनाकार के रूप में विकसित होते चले गए। इन अर्थों में अपने पाठकों को लेखकों में रूपांतरित करने में नईदुनिया विशेषकर 'संपादक के नाम पत्र' तथा 'अधबीच' स्तंभ की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
यद्यपि 'अधबीच' को मोटेतौर पर व्यंग्य विधा का एक नियमित कॉलम मान लिया गया है लेकिन यह यहीं तक सीमित नहीं है। नईदुनिया में अधबीच प्रकाशन का एक वर्ष पूर्ण होने पर एक धन्यवाद पत्र तत्कालीन प्रधान संपादक स्व. राजेन्द्र माथुर जी ने इसमें सहयोग करने वाले रचनाकारों को लिखा था।
इस पत्र में अधबीच को परिभाषित करते हुए उन्होंने कहा था- 'रोचक प्रसंग,अटपटेआचरण,मानवीय दुर्बलताएँ,खप्त, सामाजिक रूढ़ियों, जंग लगी परम्पराओं, अंधविश्वासों पर लिखे आलेखों का 'अधबीच' में स्वागत है,पैतरा व्यंग्यात्मक भी हो सकता है या विनोदपूर्ण भी,या हास्य लिए हुए, यदा कदा सीधा सपाट भी हो सकता है। विषय अखबारों में चमकने वाली खबरों ,सुर्खियों से भी लिए जा सकते हैं। कैनवास विशाल है। जरूरत है सजीव रंगों की। अधबीच की रचनाओं में ताजगी हो,लोकोपकार की भावना हो और सबसे जरूरी पठनीयता हो।
निसंदेह 'अधबीच' की परिभाषा के तहत ही इसे पढ़ा जाना चाहिए। यह भी बहुत दिलचस्प बात है कि बहुत से नए पाठक तो 'अधबीच' को एक स्वतंत्र विधा की तरह ही देखने लगे हैं।
इस लोकप्रिय और रोचक स्तंभ की लंबी उम्र के लिए इसके चालीसवें जन्मदिन पर बहुत सारी शुभकामनाएं।
ब्रजेश कानूनगो
अधबीच' के चालीसवें जन्मदिन पर हार्दिक बधाई!
ReplyDeleteअधबीच जैसे फीचर्स पत्र पत्रिकाओं की जान होते हैं...एक समय 'मेलिस टुवर्ड्स वन ऐंड आॉल' हुआ करता था हिंदुस्तान टाइम्स का!
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