विज्ञापन बोर्डों में हिन्दी का हाल
ब्रजेश कानूनगो
भाषा विज्ञान और व्याकरण जहां टकराते हों वहां भाषा की शुद्धता एक
बिंदु हो सकता है. स्थापित और निर्धारित प्रणाली के अनुसार शब्दों और सही वर्तनी
(मात्राएँ) के उपयोग के व्याकरणीय आग्रह होते हैं, जबकि भाषा विज्ञान के अनुसार जनस्वीकृति
और लोगों के प्रयोग से किसी भी भाषा का विकास माना गया है. यद्यपि शब्दों के
अपभ्रंश और बदले हुए स्वरूप मानक भाषा में स्वीकार किये जाते रहे हैं. लेकिन
शब्दों को भ्रष्ट करने और भाषा को उसकी वैज्ञानिकता से दूर करने के अनायास प्रयास
मन को बहुत पीड़ा पहुंचाते हैं.
हिन्दी के बारे में एक बात बहुत महत्वपूर्ण है कि वह जैसी बोली जाती
है, वैसी ही लिखी भी जाती है या दूसरे शब्दों में कहें तो जैसा हम लिखते हैं वैसा
ही हम उच्चारित भी करते हैं. लेकिन स्थिति यह है कि बच्चों को (कुछ हद तक बड़ों को
भी) प्रायः स्वरों, व्यंजनों के संकेतों और ध्वनियों का सही-सही ज्ञान ही नहीं
होता. उनके लिए ‘मात्र’ और ‘मातृ’ शब्दों में और उनके उच्चारण में कोई अंतर नहीं
है. ‘गृह’ और ‘ग्रह’ भी उनके लिए एक ही होते हैं.
दूसरी ओर इस तरह के शब्दों के अर्थ और उनकी वर्तनियों का अंतर समझाने
की किसी को चिंता नहीं है. हिन्दी के सामान्य प्रयोग में इतनी अराजकता है कि जिसे
जो लगता है , वह लिख देता है. विशेषतः होर्डिंगों, नामपट्टों, साइन बोर्डों,
विज्ञापनों में शब्दों को भ्रष्ट करने का उपक्रम लगातार जारी है. यह अच्छी बात है
कि हिन्दी का प्रयोग हो रहा है, लेकिन क्या अब इतना और नहीं किया जा सकता कि
अंगरेजी की तरह प्रयोग के पूर्व हिन्दी के सही शब्द, वर्तनी और उसके अर्थ को
शब्दकोश (कोष नहीं) में देख लिया जाए.
गलत शब्दों, त्रुटिपूर्ण वर्तनी के व्यापक प्रचार-प्रसार से होता यह
है कि देखा-देखी बहुतायत से उन्ही का
प्रयोग होने लगता है. हो यह रहा है कि सही शब्दों का स्थान गलत शब्द लेते जा रहे
हैं. प्रिंटिंग टेक्नोलोजी और कम्प्यूटर टाइप सेटिंग , ग्राफिक्स आदि का विकास हुआ
है लेकिन उस पर काम करने वाले टाइपिस्टों, फ्लेक्स बैनर बनाने वालों और पेंटरों का
शब्द और भाषा ज्ञान सीमित ही होता है. केवल काम करवा लेने की हडबडी में विषय-वस्तु
की भाषा के साथ खिलवाड़ को अनदेखा करना खतरनाक होगा.
सहज उपलब्ध उदाहरण है- मिठाई और दवाई की दुकानों पर बड़े-बड़े अक्षरों
में लिखा होता है-‘मिठाईयाँ’, ‘दवाईयां’, जबकि मिठाई और दवाई शब्दों का बहुवचन
करने पर ‘ई’ की बड़ी मात्रा छोटी ‘इ’ की मात्रा में बदलती है और सही शब्द बनाते
हैं-‘मिठाइयां’ और ‘दवाइयां’.
‘दुग्ध’ को सुधार कर लोग ‘दुध’ कर लेते हैं.जबकि दुग्ध का बदला हुआ
सही शब्द ‘दूध’ है जोकि सही ध्वनि के अनुसार है. दूध-डेयरियों पर शायद ही कभी यह
सही लिखा जाता होगा, यहाँ तक कि कई दुग्ध संघों के नाम पट्टों पर आसानी से ‘दुध
संघ’ पढ़ा जा सकता है.
अपने आस-पास नजर दौडायेंगे तो सैकड़ों ऐसे शब्द दिखाई दे जायेंगे,
जिन्हें पढ़ते हुए हिन्दी की थोड़ी–सी समझ रखने वाले किसी भी हिन्दी-प्रेमी को अवश्य
दुःख होगा.
ब्रजेश कानूनगो
503, गोयल रिजेंसी, चमेली पार्क, कनाडिया रोड, इंदौर-452018
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