आम लोगों तक साहित्य
ब्रजेश कानूनगो
बार बार कहा जाता है कि साहित्य आम आदमी से दूर हो गया है। कारण कई गिनाए जा सकते हैं। लोगों की रुचियाँ बदल रहीं हैं। वे इतना व्यस्त हो गए हैं कि पढने लिखने के लिए समय नही निकाल पा रहे हैं। व्यक्ति अब पाठक नही रहा,वह दर्शक में बदल गया है,पढने की बजाए अब देखना उसके लिए अधिक सुविधाजनक है। समकालीन शिल्प और भाषा को ग्रहण करने के लिए थोडे बौद्धिक श्रम की जरूरत भी होती है और वह उसे करना नही
चाहता।
साहित्य से आम लोगों की दूरी की वजहों पर लम्बी
बहस चलाई जा सकती है लेकिन इस बात में भी काफी दम है कि लोगों की दिलचस्पी
सामान्यत: रचनात्मक साहित्य में कम हुई है। सवाल यह नही है कि ऐसा क्यों हो रहा
है। मुद्दा यह है कि साहित्य को लोगों तक ले जाने के लिए क्या प्रयास किए जा रहे
हैं या किए जा सकते हैं। अपने परिवेश और सामान्य कार्यकलापों एवं गतिविधियों के
चलते साहित्य के प्रति आम व्यक्ति में कैसे रुचि जगाई जा सकती है इसके लिए हाल ही
के कुछ प्रसंग उदाहरण बनाए जा सकते हैं।
औद्योगिक नगरी देवास के एक औद्योगिक कारपोरेट संस्थान के स्टाफ सदस्यों का एक पारिवारिक मिलन समारोह उनके
अतिथिगृह में आयोजित था। आमतौर पर ऐसे कार्यक्रमों में स्टाफ सदस्यों की खेलकूद
प्रतियोगिताएँ,तम्बोला आदि करवा दिए जाते हैं किंतु परम्परा से हटकर वहाँ के
प्रबन्ध निदेशक को अपने स्टाफ को ‘साहित्य’ से परिचित करवाना ज्यादा उपयोगी प्रतीत
हुआ। उनका मानना था कि मशीनों तथा उद्योग जगत के शोरगुल के बीच कर्मचारी संवेदनाओं
और रचनात्मक विचारों से वंचित रह जाता है। इसलिए कार्यक्रम में कुछ साहित्यकारों
को आमंत्रित किया गया। प्रबन्धनिदेशक का विश्वास था कि बेहतर व्यावसायिक निष्पादन
के लिए कर्मचारियों को साहित्यिक रचनात्मकता से रूबरू करवाना सकारात्मक कदम होगा।
यहाँ मैं इतना जरूर स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि यहाँ वैसी कोई ‘कवि गोष्ठी’
आयोजित नही थी जिसमें देर रात तक चुट्कुले और ठहाकों के बीच ‘वाह-वाह क्या बात है!’ जैसी आवाजें उभरती गूँजती
रहीं हों। कार्यक्रम में प्रबन्धनिदेशक और सुपरवाइजरी स्टाफ सहित उनके परिवार के
सदस्यों ने साहित्य पर हुई बातचीत का पूरे मनोयोग से आनन्द लिया। साहित्य क्या
है?,समकालीन कविताओं में शिल्प ,शैली,अनुभूति और भाषा तथा बिम्ब विधान जैसी गूढ
बातों को भी सहज,सरल तथा सम्प्रेषणीय रूप में अभिव्यक्त होने के कारण सुना।
रचनाकारों ने कविताओं के उदाहरण देते हुए उद्योग जगत में काम करने वाले व्यक्तियों
तक साहित्य की समझ को पहुँचाने का प्रयास किया। यह समझिए यह कार्यक्रम उत्पादन
क्षेत्र में एक छोटी-सी साहित्य कार्यशाला की तरह रहा।
दूसरा प्रसंग एक प्रतिष्ठा सम्मान समारोह का है। अपने पितृ पुरुष की स्मृति में परिवार के सदस्य प्रतिवर्ष किसी रचनाकार को सम्मानित कर पुरस्कार प्रदान करते हैं। यहाँ
साहित्य जगत में पुरस्कारों की अपनी प्रतिष्ठा अथवा मानदंडों जैसे प्रश्न गोंण
हैं, महत्वपूर्ण बात यह है कि एक आम परिवार अपने पूर्वज की स्मृति में कर्मकांडों
या प्रतिमा निर्माण की बजाए ‘साहित्यिक पहल’ करना जरूरी मानता है। कलमकार का
सम्मान करता है। आयोजन के बहाने परिवार से जुडे आत्मीय रिश्तेदार साहित्यिक
गतिविधि से जुडते हैं तथा विद्वजनों के विचारों तथा रचनाओं से रूबरू होते हैं। निसन्देह
अपने क्षेत्र के विद्वानों एवं रचनाकारों का सामीप्य आजीवन उनके स्मृति पटल पर
अंकित रहता होगा। रचनाओं और आख्यानों के माध्यम से साहित्य की थोडी ही लेकिन सही
समझ परिवार के युवा सदस्यों के अंतस में उतरती ही होगी। साहित्य से विमुख होते जा
रहे पाठक को लौटा लाने की ऐसी पहलें शायद अब अधिक कारगर हो सकती हैं।
ऐसे कार्यक्रमों में उपस्थित श्रोता पारिवारिक कारणों और
आग्रह के कारण उपस्थित होते हैं और जिनमे ज्यादातर बिल्कुल गैर साहित्यिक होते हैं
जब रचनाकार से उसकी रचना प्रक्रिया जानते हैं, उसकी गम्भीर साहित्यिक रचनाओं का
आस्वाद लेते हैं तब उन्हे जीवन में साहित्य की भूमिका और उसकी सार्थकता को समझना
बहुत मुश्किल नही रह जाता। यह देखा गया है कि उनमें से बहुत से बाद में साहित्यिक
रचनाओं के प्रति लालायित हो कर बहुत सी किताबें पढ डालते हैं। यह एक सुखद
परिवर्तन है।
आम लोगों में
साहित्य में रुचि और समझ के विकास के लिए साहित्यिक संस्थाओं और लेखक संगठनों
के इतर संस्थाओं द्वारा ऐसी सक्रियता और सद्इच्छा जागृत हो जाना शायद समाज के लिए
फायदेमंद साबित हो सकता है। साहित्य से क्राँति भले ही न होती हो वह बेहतर जीवन की
राह जरूर दिखाता है।
ब्रजेश कानूनगो
503,गोयल रिजेंसी,चमेली पार्क,कनाडिया रोड, इन्दौर-452018
मो.न.09893944294
No comments:
Post a Comment