भूकंप
के बाद कविता
ब्रजेश कानूनगो
भूकंप के बाद
एक और भूकंप आता है हमारे अंदर।
विश्वास की चट्टानें
बदलती है अपना स्थान
खिसकने लगती है विचारों की आंतरिक प्लेटें
मन के महासागर में उमड़ती है संवेदनाओं की सुनामी लहरें
तब होता है जन्म कविता का।
भाषा शिल्प और शैली का
नही होता कोई विवाद
मात्राओं की संख्या
और शब्दों के वजन का कोई मापदंड
नहीं बनता बाधक
विधा के अस्तित्व पर नहीं होता कोई प्रश्नचिन्ह्
चिन्ता नहीं होती सृजन के स्वीकार की।
अनपढ़ किसान हो या गरीब मछुआरा
या फिर चमकती दुनिया का दैदीप्य सितारा
रचने लगते हैं कविता।
कविता ही है जो
मलबे पर खिलाती है फूल
बिछुड़ गये बच्चों के चेहरों पर
लौटाती है मुस्कान
बिखर जाती है नईबस्ती की हवाओं मे
सिकते हुए अन्न की खुशबू।
अंत के बाद
अंकुरण की घोषणा करतीं
पुस्तकों में नहीं
जीवन में बसती है कविताएँ।
ब्रजेश कानूनगो
503,गोयल रिजेंसी,चमेली पार्क,कनाडिया रोड,इंदौर-18
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