Saturday, October 1, 2011

बापू की ब्लड रिपोर्ट




बापू की ब्लड रिपोर्ट

ब्रजेश कानूनगो

मूल्यहीनता और भ्रष्टाचार के महा सागर में डूबते भारतीय गणराज्य के जहाज और मँहगाई के ज्वार-भाटे के बीच नागरिकों के  अनसुने क्रंदन के दौरान यह खबर सचमुच उत्साह जनक है कि राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की ब्लड रिपोर्ट सुरक्षित है । बापू की हत्या के दस दिनों पूर्व 21  जनवरी 1948 को इरविल अस्पताल के डॉ़ बी़ एल़ तनेजा की ओर से जारी बापू की ब्लड रिपोर्ट बहुराष्ट्रीय कम्पनी टिस के  मालिक एवं ऐतिहासिक वस्तुओं के  संग्रहकर्ता जेम्स ऑटिस के  पास उपलब्ध है,उनके पास हत्या के  समय मौके पर गिरी उनके  खून की बूंद भी है जो उन्हे भारतीय प्रो़ जे,आऱ प्रकाशन ने उपलब्ध करायी थी। भारत सरकार इस विषय में क्या  कदम उठाएगी मैं नही जानता लेकिन मेरा मानना है कि गाँधीजी की ब्लड रिपोर्ट और उनके खून की अंतिम बूंद का अध्ययन हमारे देश के  भविष्य को जरूर प्रभावित कर सकता है।

हम जानते हैं कि साठ वर्ष पूर्व चिकित्सा विज्ञान इतना उन्नत नहीं हुआ था , लेकिन अब हम इतनी तरक्की कर चुके  हैं कि परखनली शिशु और जीवों तक के  क्लोन  भी बना लेते हैं । वैज्ञानिक मानव हृदय एवं मस्तिष्क निर्माण की दिशा में भी बहुत आगे तक बढ़ चुके हैं। गाँधीजी की साठ वर्ष पुरानी ब्लड रिपोर्ट और उनके खून की बूंद का चिकित्कीय तथा वैज्ञानिक विष्लेषण अब बिलवुत्र्ल कठिन नहीं होगा।यों समझिए इस रिपोर्ट के माध्यम से,या स्वयं बापू की ओर से हमें यह मौका उपलब्ध हो रहा है कि अपने देश की दशा बदल सकेँ । जीते जी तो बापू ने देश की जनता को बहुत वुत्र्छ दिया था , मरणोपरांत भी उनकी राष्ट्र के  प्रति सद्‌इच्छा के कारण ही यह ब्लड रिपोर्ट सामने आई लगती है ताकि देशवासियों का कल्याण हो सके .
हमारे परंपरागत नैतिक मूल्यों की जो आज दशा हो गई है वह जग जाहिर है। यदि हम कहें कि यह 'सत्य' है,यह 'सच्चाई' है तो वह क्या  सचमुच सत्य या सच्चाई होगी। इनके  अर्थ युधिष्ठिर और महात्मा गाँधी के  समय जो भी रहे हों लेकिन अब सच वह है जो कोई पॉलीग्राफर झूठ पकड़ने वाली मशीन से खोजे। सत्य वह है जो असत्य के  कैनवास पर चित्रित हो। सत्य वह झूठ है जो पकड़ा न जा सके । सत्य झूठ के  आकर्षक रैपर में लिपटी चाकलेट है,जो मधुर है। सत्य कभी कड़वा भी हुआ करता था किन्तु कड़वे सच पर आज स्वार्थ की चाशनी चढ़ा दी जाती है।
हमारे नैतिक मूल्य आचरण नहीं सिर्फ शब्द भर रह गए हैं। ईमानदारी को आचरण में अपनाने वाला क्या सचमुच सम्मान का पात्र रह जाता है? अंगर वुत्र्छ थोड़ी बहुत ईमानदारी दिखाई देती है तो वह तथाकथित अवैध कारोबारों मे ही नजर आती है।यह विडम्बना ही है कि एक नंबर के  धंधे में ईमानदारी के आकाश को बेईमानी की धुंध ने ढक लिया है लेकिन काले धंधे के अंधेरे मे ईमानदारी के सितारे चमचमा रहे हैं।

पचास हजार लेकर कोई स्थानान्तर देपालपुर से दिल्ली होना है तो वह हो जाएगा।टैक्स बचाना चाहते हैं, बस थोड़ा सा रूमानी हो जाएँ,मूल्य चुकाएँ,सामनें वाला नैतिक मूल्य का पालन करेगा और आपका काम हो जाएगा।बेईमानी के बसंत मे सूरजमुखी के  पूत्र्ल जरूर खिलेंगे।

ढ़ोंगी उस्तादों की मादक करतालों के  शोर के  बीच 'सदाचार' का सितार अपनी पहचान खो चुका है। जिसकी लाठी उसकी भैंस के  सिद्धान्त के चलते 'सज्जनता' की वृत्र्षकाय गाय न जाने किस बियाबान में भटक रही है। अश्लीलता और अक्खडता को मान्यता दिलाने के क्कर में खतरों के  खि़लाड़ियों ने 'शालीनता ' के शेर को पूत्र्हड़ता के  निर्लज्ज पिंजरे में वैत्र्द कर लिया है।
वैज्ञानिक बापू की ब्लड रिपोर्ट और खून की बूंद का परीक्षण-विष्लेषण करें तथा पता लगाएँ कि उसमें ऐसे कौन से घटक और तत्व थे जिनके  कारण बापू में सच्चाई,ईमानदारी,जुझारूपन तथा दृढ़ता जैसे गुण हुआ करते थे। हिमोग्लोबिन की तरह ऐसा ही क्या  कोईत्व खून में मौजूद था जिसके  कारण अहिंसा और संघर्ष की भावना को विकसित करने वाले रसों और कोशिकाओं का निर्माण होता था। क्या  बकरी के  दूध के  सेवन की वजह से उनके  क्त में ऐसे गुणकारी वायरस का प्रादुर्भाव हुआ था जिससे उन्हे अंतिम आदमी के दुखों की चिन्ता लगी रहती थी। पदयात्राओं के  कारण कहीं उनके  क्त  में स्वदेशी और मानव प्रेम के सकारात्मक जीवाणुओं का विस्तार तो नही हुआ था।

इस रिपोर्ट के  निष्कर्षोँ से वैज्ञानिकों को उनकी तरह के  कृत्रिम क्त बनानें में मदद मिलेगी। देश को इन दिनों बापू के रक्त की तरह के  खून की बहुत आवश्यकता है। जैसा रक्त हमारे नेताओं,अधिकारियों और नागरिकों में दौड़ेगा,वैसा ही आचरण उनके  कार्यों-व्यवहारों मे भी परिलक्षित होगा।

प्रगति का दूसरा नाम परिवर्तन होता है। विकास के इस महत्वपूर्ण समय में नैतिकता ,ईमानदारी,सच्चाई,सदाचार,सज्जनता, शालीनता जैसे मूल्य पुराने और कालातीत होते जा रहे हैं,भ्रष्टाचार के  दानव ने मूल्यों को सड़ाकर उसकी सुरा बनाकर उदरस्थ कर ली है। ऐसे में बापू की ब्लड रिपोर्ट के निष्कर्षों का उपयोग हमारी बहुत मदद कर सकता है।
वैज्ञानिक बापू की तरह का रक्त बनाएँ और सरकार निशुल्क खून चढ़ाने की व्यवस्था करे। खून बहाने के बहुत उपक्रम कर लिए अब तक ,अब जरा बापू मार्का प्रभावी खून चढ़ाने पर विचार किया जाना चाहिए ।

ब्रजेश कानूनगो
503,गोयल रिजेंसी,चमेली पार्क,
कनाडिया रोड,इंदौर-18

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