Monday, April 10, 2017

कविता लिखते हुए कुछ नोट्स

कविता लिखते हुए कुछ नोट्स 


1

अंधेरों के खिलाफ कवि  

अन्धकार है तो कहीं न कहीं जरूर रात घिर आई होती है। अन्धेरा क्या सचमुच इतना बुरा है? उजाले क्या हमेशा अच्छे ही होते हैं।अँधेरे के भी कुछ उजले पक्ष होते हैं,तो उजाला भी कई अंधेरों को लेकर आता है।

अँधेरा,उजाला व्यक्ति सापेक्ष भी हो सकता है और समय सापेक्ष भी।तुम्हारा उजाला मेरा अँधेरा बन सकता है।उसका अंधेरा तुम्हारे लिये रौशनी लेकर आ सकता है।

कितने हैं जो दूसरों के अंधेरों में मोमबत्तियां लेकर पहुँचते है? ज्यादातर लोग किसी अन्य के इन्तजार में अपने उजालों की अय्याशी में मस्त रहते है।कोई सूरज निकलेगा और सुबह होगी तो उजियारा बिखरेगा।
अंधियारा मिटाना किसी और की जिम्मेदारी समझ हर कोई हाथ बांधे खड़ा रहता है।

विख्यात शायर जनाब राहत इंदौरी का एक शेर देखिए-

जुगनुओं को साथ लेकर रात रोशन कीजिये
रास्ता सूरज का देखा तो सहर हो जायेगी।।

राहत जी का शेर दिशा देता है। कवि जुगनुओं को साथ लेकर अँधेरे की दीवार को भेदना चाहता है। इसमें सामूहिकता और कमजोर की एकजुटता की ताकत को रेखांकित किया गया है।

ये अँधेरा क्यों समाप्त करना चाहता है कवि? कहीं न कहीं इसके पीछे अँधेरे के खिलाफ प्रतिरोध की भावना समाहित है।प्रतिबद्धता और उसकी पक्षधरता के दर्शन का पता चलता है।

कवि के शब्द कविता में आकर अश्म बन जाते हैं जो भाषा और विचार की रगड़ में  छोटी सी चिंगारी का सबब बनते हैं। समाज में उजाले के संचार का वातावरण निर्मित करते हैं।

कविताओं में जब भी थोड़ी सी ऐसी चमक दिखाई देती  है, तो वह भरोसा पैदा करती है कि अभी कवि अपने काम में लगा हुआ है। लेकिन तिमिर की मजबूत दीवार भेदने के लिए ये कोशिशें नाकाफी है। जुगनू हों या मोमबत्तियां, इनको एक साथ इकट्ठा होने से ही प्रकाश का बड़ा घेरा सम्भव होता है।

जब दृष्टि धुंधला रही हो,अंधेरा घना हो तो अधिकतम उजियारे के बंदोबस्त में  कविता की रोशन मोमबत्तियां अधिकतम चाहिए।

कवि को अपने अंधेरों से खुद तो लड़ना होता ही है, साथ ही दूसरों को साथ लेकर बड़ी लड़ाई में भी भाग लेना जरूरी होता है।

00000

2

संवेदनाएँ कवि का ईश्वर होती हैं !

एक साहित्यिक वाट्सएप ग्रुप में 'ईश्वर' विषय पर कविता लिखने को सदस्य कवियों को कहा गया था।

'
ईश्वर' पर कविता लिखना.. ! ईश्वर को जाने बगैर। कितना जानते हैं हम ईश्वर कोईश्वर कहने को एक,लेकिन रूप अनेक। यही सुनते गुनते आये बचपन से।

किस ईश्वर पर लिखें कविताउस पर!  जो निराकार है? या उस पर जो किसी पत्थर की मूरत में पूजा जा रहा है। याकि जो कण कण में व्याप्त है।

यदि वह कण कण में, हरेक प्राणी मात्र में विद्यमान है तो क्यों दुखी है,क्यों कष्ट में है,क्यों परेशान है ईश्वर ?
तो क्या उन दुखों पर कविता लिखी जाए?
क्यों प्रताड़ित है वह, क्यों उसका शोषण है, क्यों गैर बराबरी है समाज के हरेक ईश्वर में।

ख़ुशी है जहां, वहां शायद ईश्वर बसा है। दुःख है तो ईश्वर नदारद  है। सुख दुख सब उसी की सौगात है।क्या यही भरम है। असली ईश्वर फिर है कहाँ?

ईश्वर अल्ला तेरो नाम सबको सन्मति दे भगवान। तो फिर यह 'भगवान' कौन हुआ? रामदीन की बगीची में इस्माइल की बकरी के घुस जाने पर सब्जीयों की तरह क्यों कट जाते हैं लोग। जिनमें ईश्वर या अल्ला या दोनों बसे हैं।

कौनसा रंग ईश्वर को प्रिय है? हरा? केशरिया? सफ़ेद? जो कफ़न का भी है और समुच्चय भी है इंद्रधनुष के रंगों का। सुर्ख रंग आंसुओं का क्यों हो जाता है ईश्वर के बंदों की आँखों में। क्यों फांसी पर चढ़ जाते हैं अन्नदाता ईश्वर?

हुसैन के चित्रों में ईश्वर दीखता था किसी को। फिर भी निर्वासन का दंड भोगता है कलाकार। ईश्वर को देखने की दृष्टि ईश्वर नहीं देता। ईश्वर की कविता में जोखिम है। ईश्वर पर लिखते हुए अक्सर भजन हो जाती हैं कविताएँखतरा है यही।

कोई चाहे न चाहे कविता में  दुःख और करुणा आ ही जाएंगी । सुख होगा, खुशी होगी तो ईश्वर की कविता में वह आध्यात्मिक या दार्शनिक  हो जाएंगे।

कविता यदि सच्ची होगी फिर वह किसी भी विषय पर क्यों न लिखी गई हो, 'ईश्वर' पर हो न हो , संवेदनाओं की अभिव्यक्ति वहां जरूर होगी। संवेदनाएं कवि का असली ईश्वर होती हैं।


ब्रजेश कानूनगो
503,
गोयल रीजेंसी,चमेली पार्क,कनाड़िया रोड, इंदौर-452018


No comments:

Post a Comment