पिता
जो हूँ.....
ब्रजेश
कानूनगो
कविता-1
बचपन
में लौटने के लिए
पाँच बरस की अपनी बेटी बन जाना चाहता हूँ मै
मनोरंजन पार्क की हवा में लहराती नाव में बैठकर
नीम की सबसे ऊँची पत्ती को छूकर
खिलौना रेलगाड़ी के आखिरी डिब्बे से
चहकना चाहता हूँ
जल्दी घर लौटनें की हिदायत और
आँखें झपकाती
सुनहरे बालों वाली गुड़िया की फरमाइश के बाद
दरवाजे की ओट में छुपकर
शेर की परिचित आवाज से
डरा लेना चाहता हूँ स्वयं को
झूल जाना चाहता हूँ अपने ही कंधों पर
नन्हीं बाहों के सहारे।
पाँच बरस की अपनी बेटी बन जाना चाहता हूँ मै
मनोरंजन पार्क की हवा में लहराती नाव में बैठकर
नीम की सबसे ऊँची पत्ती को छूकर
खिलौना रेलगाड़ी के आखिरी डिब्बे से
चहकना चाहता हूँ
जल्दी घर लौटनें की हिदायत और
आँखें झपकाती
सुनहरे बालों वाली गुड़िया की फरमाइश के बाद
दरवाजे की ओट में छुपकर
शेर की परिचित आवाज से
डरा लेना चाहता हूँ स्वयं को
झूल जाना चाहता हूँ अपने ही कंधों पर
नन्हीं बाहों के सहारे।
०००००
कविता-2
टेलीफोन
की घंटी 1998
पडोसी के घर में बज
रही है घंटी
शायद बेटे का फोन
होगा
टीवी की आवाज धीमी
कर दी है पत्नी ने
प्रेशर कुकर उतार
लिया है गैस पर से
कान दीवारों से सट
गए हैं
अभी कोई कहेगा-
फोन आया है पचमढी
से
पडोसी के घर पर
पडा है आज ताला
और बन्द घर में
गूँज रही है
बेटे की आवाज ।
०००००
कविता-3
पहेली
वे थे
मैं था
सब था
वे थे वे
मैं मैं था
सब था अलग अलग
उनमें नहीं था मैं
मुझमें तो कतई
नहीं होते थे वे
अब मैं हूँ
नहीं हैं वे
पढ़कर सुनाता हूँ
पत्नी को
कुमार अम्बुज की
कविताएँ
सुनाने लगते हैं वे
धर्मयुग से नईम के
नवगीत
ओह! मैं हूँ
वे भी हैं
उनके जैसा मैं
मेरे जैसे वे
सब कुछ पहले जैसा.
०००००
कविता-4
नक्शे
में कैलिफोर्निया खोजता पिता
चालीस डिग्री
अक्षांश और
एक सौ दस डिग्री
देशांतर के बीच में
यहाँ इधर,थोडा
हटकर,बस यहीं
यही है
कैलिफोर्निया
ज्यादा दूर तो
दिखाई नही देता नक्षे में!
उडने के छत्तीस
घंटे बाद
फोन किया था बेटी
ने
बहुत दूर है
कैलिफोर्निया
ईंधन लेने के लिए
यहाँ उतरा होगा
विमान
बेटी ने बिताए
होंगे
पाँच घंटे अकेले
यहाँ से बदलना पडता
है विमान
एक बैग भर ही तो था
पास में
सामान तो शिफ्ट कर
ही देते होंगे एयरवेज वाले
जरा देखें तो
कैसी है जलवायु
कैलिफोर्निया की
बारिश होती है यहाँ
कितनी
कितना रहता है
सर्दियों में
न्यूनतम तापमान
समुद्री हवाएँ कब
बहती हैं इस ओर
तपती तो होगी
गर्मियों में धरती
मौसम होते भी हैं
या नही
कैलिफोर्निया में
कौनसी फसलें बोते
हैं कैलिफोर्निया के किसान
मिल ही जाता होगा
बाजार में
गेहूँ और चावल
‘जितने कष्ट कंटकों
में है...’
दसवीं कक्षा में
पढी कविता की अनुगूंज में
घुल रही है बेटी की
आवाज
नक्षे की रेखाओं से
होता हुआ
पहुँच रहा है पिता
का हाथ
बेटी के माथे तक !
०००००
कविता-5
बच्चे का चित्र
अपने में ही डूबा
नन्हा बच्चा बना रहा है एक चित्र
इतना तल्लीन है कि
स्पीकरों पर चीख
रही चौपाइयाँ
बाधा नही डाल रही
उसके काम में
उसे कोई मतलब नहीं
है इससे कि
कितने मारे गए
तीर्थ स्थल की भगदड में
और कितनों को घोंप
दिया गया है छुरा
वित्त मंत्रालय
द्वारा
उसे पता नहीं है
कब अपना समर्थन
वापिस ले लेंगे सांसद
और कब गिर जाएगी सरकार
घटनाओं और
दुर्घटनाओं से बेखबर बच्चा
बना रहा है कोई
नदी,
झील भी हो सकती है
शायद
एक नाव – जिसे खै
रहा है कोई धीरे-धीरे
किनारे पर बनाई है
एक झोपडी
जिसकी खपरैल से
निकल रहा धुँआ
महसूस की जा सकती
है हवा में
सिके हुए अन्न की
खुशबू
खजूर का एक पेड उगा
है चित्र में
उड रहे हैं कुछ
पक्षी स्वच्छंद
अटक गया है शायद
आधा सूरज पहाडियों के बीच
देखिए जरा इधर तो
निकल पडे हैं कुछ
लोग कुदाली फावडा लिए
निकाल लाएँगे अब
शायद सूरज को बाहर
पहाडियों को खोदते
हुए
चढ जाएँगे खजूर के
पेड के ऊपर
और बिखेर देंगे
धरती पर मिठास के दाने
नन्हा बच्चा बना
रहा है चित्र
जैसे बनती है जीवन
की तस्वीर
दुनिया के कागज पर.
ब्रजेश
कानूनगो
503, गोयल रीजेंसी,
चमेली पार्क, कनाडिया रोड,इंदौर -452 018
No comments:
Post a Comment