तालाब को सजा न सुनाएँ
ब्रजेश कानूनगो
गणेशोत्सव का समय था. प्रतिमा विसर्जन के
लिए घर से करीब एक किलोमीटर के फासले पर स्थित पिपलियाहाना तालाब पर हमलोग गए.
यद्यपि सार्वजनिक जल स्रोतों की स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से तालाबों
आदि में मूर्ती विसर्जन पर प्रतिबन्ध का एक आदेश जरूर स्थानीय प्रशासन द्वारा जारी
किया जाता है लेकिन सामान्यतः इस आदेश की धज्जियां उड़ते भी आम तौर पर वहीं दिखाई
दे जाता है. चूंकि नगर निगम ऐसे स्थानों पर एक पांडाल लगाकर मूर्तियों को एकत्र
करके यथाविधि अन्यत्र विसर्जित कर देने का आश्वासन भी देता है अतः हम लोग वहां पांडाल में प्रतिमा
सौंपकर तालाब की मुंडेर पर बैठकर बहुत देर तक खूबसूरत नज़ारे का आनंद लेते रहे.
पोते को मैंने बहुत उत्साह से बताया कि आगे-पीछे यहाँ जरूर कोई ख़ूबसूरत पिकनिक
स्पॉट विकसित हो जाएगा और हमलोग शाम को रोज यहाँ आया करेंगे.
परन्तु हाल ही में यह खबर पढ़कर बहुत निराशा हुई कि तालाब के जल भराव
क्षेत्र की मिट्टी और चट्टानों का परीक्षण किया गया है. यहाँ तालाब की जमीन पर अब
नए न्यायालय भवन को बनाया जाना प्रस्तावित है.
विकास के इस दौर में शायद यह खबर अधिकाँश लोगों के भीतर कोई ख़ास हलचल
पैदा न कर सके लेकिन उन सन्वेदनशील लोगों को जरूर ठेस पहुंचाती है जो प्रकृति, पर्यावरण और
प्राकृतिक संसाधनों से प्रेम करते हैं. यह पहली खबर नहीं है जब विकास के लिए किसी
तालाब के सीने पर कांक्रीट की मीनारें खडी करने की पहल की गयी हो. दुर्भाग्य से
हमारे देश- प्रदेश के कई नगर और महानगर इसके जीवंत उदाहरण हैं जहां सैंकड़ों
तालाबों और बावडियों, कुओं की कब्र पर कॉलोनियां और सड़कें बना दी गईं.
किसे याद नहीं होगा कि इंदौर जैसे महानगर और देवास जैसे शहरों में
कितनी दूर से (लगभग 150 कि.मी.) नर्मदा का पानी लोगों की प्यास बुझाने के लिए लाना पडा है.
मुझे याद है आज से कोई तीस बरस पहले देवास में हम परिवार के लोग एक दिन छोड़कर
स्नान करते थे क्योंकि उन दिनों इंदौर से पानी रेल गाडी से एक दिन छोड़कर देवास आता
था. जबकि जो सड़क हमारे घर तक पहुँचती थी उसके नीचे एक ख़ूबसूरत बावडी दफन कर दी गयी
थी. पहले बावडी की भरपूर अनदेखी की गयी फिर उसमें लगातार कूढा-करकट डाला जाता रहा.
बावड़ी को पहले जहर देकर बीमार किया गया, फिर क्रमशः मरती हुई वह एक दिन हमारी नज़रों से ओझल हो गयी. यह वही
बावडी थी जिसमें उतरकर हम बचपन में रोज नहाया करते थे.
इसीतरह नगर के एक मात्र टाउन हाल के सामने का ख़ूबसूरत तालाब तलैया में
बदल गया और उसके जल भरण क्षेत्र में अट्टालिका खडी हो गयी थी. विडम्बना है कि उसी
इमारत की भूतल पर स्थित कोफी हाउस में बुद्धिजीवी और पत्रकार जलसंकट को लेकर
विमर्श करते रहे. ये कहानी केवल एक शहर या कस्बे की नहीं है. जल स्रोतों की
दुर्दशा के ऐसे अनेक उदाहरण सहज रूप से हमारे आसपास बिखरे पड़े हैं.
इंदौर के पिपलियाहाना तालाब के पानी से आसपास के कई ट्यूबवेल रिचार्ज
होते हैं. मालवा सहित देश भर में दिनों-दिन गिरता भूजल स्तर किसी से छुपा नहीं है.
दूसरी तरफ कांक्रीट के निर्माणों ने सडकों के बरसाती पानी को जमीन में जाने से
रोकने का काम ही किया है. इसके अलावा गौर करने वाली बात यह भी है कि जिस स्थान
पर यह तालाब ( वर्ड-कप चौराहा) अवस्थित है वह भविष्य के बहुत सुन्दर पिकनिक स्पॉट
में रूपांतरित होने के लिए पूरी तरह उपयुक्त है. सामान्यतः तालाबों के आसपास का
भूखंड मनोरम होता है और उसका विवेकपूर्ण उपयोग ही किया जाना चाहिए. कार्यालयों और
संस्थानों के भवनों के लिए अन्य पथरीली, बंजर या अनुत्पादक भूमि को विकसित भी किया जा सकता है.
अनेक उदाहरण हैं जब प्राकृतिक संसाधनों और पर्यावरण को नुक्सान
पहुंचाए बगैर विकास किया गया है. न्यायालय परिसर के लिए तो कई स्थान मिल जायेंगे
जहां अपराधियों को सजा सुनाई जा सकती है लेकिन विकास के नाम पर एक निरपराध तालाब
को मौत या आजीवन कारावास की सजा दिया जाना कतई न्यायोचित नहीं कहा जा सकता.
ब्रजेश कानूनगो
503,गोयल रिजेंसी, चमेली पार्क, कनाडिया रोड, इंदौर-452018
मो.न. 09893944294
तालाब, कुए, बावडी आदि पानी के मामले मे आत्मनिर्भर व्यवस्था के तरीके है परंतु विकास पसंदो को मन्हंगी व खर्चीली योजना मे आर्थिक व राजनीतिक लाभ दिखाई देता है. विकास के नाम पर प्रकृति व पर्यावरण का विनाश किया जा रहा है
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