हवा बनाने की कला
ब्रजेश कानूनगो
जब देश में कहीं भी चुनाव होने लगते हैं न जाने क्यों मुझे बचपन का वह दोस्त याद आने लगता है जो बिलकुल मालगुडी के प्रसिद्द महाबातूनी चरित्र की तरह था. अक्सर ऊंची-ऊंची फैंकता रहता था. जिस दिन वह कोई लम्बी नही हांक पाता, उसके पेट में मरोड होने लगती थी और रात को बड़ी देर तक वह सो नही पाता था. शायद इसी नींद के प्रबंधन के लिए दिन भर वह इस जुगाड़ में लगा रहता था की कोई मिले तो वह अपनी नई गप्प या नया किस्सा सुनाकर हल्का हो ले. इस प्रवत्ति की वजह से लोगों ने उसे‘हवाबाज’ की संज्ञा से नवाजा था. उसकी हवाबाजी का यह आलम था कि वह अपनी बातों से किसी की भी हवा बना सकता था और जब चाहे किसी की हवा निकाल भी दिया करता था. हवा बनाने और हवा निकालने में वह माहिर था. उन दिनों नगर पंचायत के चुनावों में कुछ प्रत्याशी अक्सर उसकी सेवाओं का लाभ भी लिया करते थे.
यह वही समय था जब डाक्टर ,वैद्य या हकीम साहब मरीज को देखने के बाद महंगी-महंगी जांचें करवाने के परामर्श देने की बजाए मरीज को हवा बदली की सलाह देना पसंद किया करते थे. नई जगह और नए वातावरण की नई हवा के साथ ही रोगी अपने कष्टों से मुक्त भी होने लगता था. शरीर की बीमारियाँ भाग खड़ी होती थीं. कमाल है कि यही नुस्खा इन दिनों भारतीय राजनीति में प्रबल होता दिखाई देता रहा है. इस महादेश के हर हिस्से को तथाकथित असाध्य बीमारियों से मुक्त करने के लिए जोर दिया जाता है कि अब हर जगह सत्ता में बदलाव की बयार बहे. यही वजह है कि मेरे बचपन के उस महाबातूनी हवाबाज दोस्त की तरह के लोगों की पूछ परख चुनावों के दिनों में काफी बढ़ जाती है, उनकी मांग का सूचकांक लगातार ऊंचा उठता चला जाता है है.
देखा जाए तो नए जमाने में हवा बनाने के तरीकों में बदलाव भी आया है. बडी बडी बातों के तीर फैंकने के लिए अब किसी चौपाल या हाट-बाजार में मजमा लगाने की जरूरत नहीं रही है, मीडिया और सोशल मीडिया पर ऐसे हवाबाजों की आंधियां चलने लगती हैं. नामी-गिरामी विज्ञापन एजेंसियां भी आपकी सेवा में हाजिर हो जाती हैं, जो मोटी रकम लेकर अपने नियुक्त किए हवाबाजों के जरिये इस काम को अंजाम देने में मुस्तैदी से जुट जाती हैं. इस हवाबाजी का आलम यह होता है कि वे अपनी सरकार और मंत्रीमंडल तक की घोषणा करने में सफल होते दिखाई देने लगते हैं.
हवाबाजों की दृष्टि के भी क्या कहने वे साफ़-साफ़ देख लेते हैं कि बाजार में अभी किसकी हवा चल रही है और कैसे नई हवा बनाई जा सकती है. किसी महान मौसम विज्ञानी की तरह वे हवा का विश्लेषण करने का भरपूर सामर्थ्य रखते हैं. किस हवा में कितनी आक्सीजन और कितनी कार्बनडाय आक्साइड है. कितनी नायट्रोजन किसी और हवा से आकर अपनी हवा में अपना असर छोड़ सकती है. कितनी प्राणवायु अगर दक्षिण दिशा से आकर उत्तर की हवा में मिल जाए तो नई यौगिक या मिश्र हवा का परिणामों पर क्या सकारात्मक असर हो सकता है. ऐसी तमाम बातों को यह ‘हवा’ विज्ञानी समझ लेता है. कोई भी हवाबाज ऐसे गणित में बड़ा निपुण होता है. वह हर हवा पर उसका नाम लिखने में सक्षम होता है. जानकार लोग उसके लिखे शब्दों के रंग से पहचान जाते हैं कि कौनसा झंडा इस हवा में लहराने वाला है.
मुश्किल केवल इतनी सी है कि किसी भी नाम की कोई भी हवा मात्रा से अधिक किसी भी रंग के गुब्बारे में पहुँच जाए तो उस के फट जाने का अन्देशा बढ जाता है.
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