सर्वव्यापी है ‘व्यापम’
ब्रजेश कानूनगो
हमेशा से कहा जाता है रहा है कि हमारे यहाँ कि ‘कण-कण में भगवान’ बसा होता है।
भगवान सूक्ष्म रूप धर कर अणु-परमाणु प्रवेश के जरिए जल,थल, वायु सभी में अपनी
उपस्थिति बनाए रखते हैं। उनकी विराटता तभी दिखाई पडती है जब वे स्वयं उसका प्रदर्शन
करते हैं। महाभारत के मैदान में जब अर्जुन को इस दर्शन का लाभ मिला, तो संसार को गीता
का महान दर्शन मिला था।
अब ऐसा कठिन समय आ गया है जब भगवान अपने कणों और परमाणुओं के निवास में
कुछ तत्वों की घुसपैठ की समस्या से जूझ रहे हैं। एक संघर्ष सा छिडा हुआ है। आदर्श
जीवन मूल्यों और सदाचार की सम्पदा को बचाए रखना बहुत कठिन हो गया है। ऐसा नही है
कि शत्रु ने आज ही सिर उठाना शुरू किया है, लेकिन अब उसने समाज की परम्परागत अच्छाइयों
पर हमला बोलने के लिए अपना भी विराट रूप दिखाना शुरू कर दिया है। व्यापम का यह
विराट रूप स्वार्थपूर्ति और कमाई का नया दर्शन लेकर आ गया है।
छोटे-छोटे व्यापम तो हमेशा से होते रहे हैं परंतु व्यापम की आज की भव्यता
चमत्कृत करती है। व्यवस्था की नस नस में व्यापम व्याप्त हो गया लगता है। यह एक दिन
में नही हो गया है। उसने पूरी तैयारी की है, पर्याप्त समय लिया है। यह धारणा
बैठाना कोई आसान काम नही है कि व्यापम का होना ही विश्वास का होना है। जहाँ व्यापम होगा वहाँ काम भी होगा। लोगों को शनै-शनै
विश्वास दिला दिया गया कि काम कराना है तो खुद को भी व्यापम होना पडेगा। बगैर
व्यापम हुए अपने कल्याण की कामना व्यर्थ है।
स्थिति यह है कि व्यवस्था के कण-कण में और जीवन के हर क्षेत्र में
व्यापम अपने पैर मजबूती से जमा चुका है। व्यापम के विरोध में, उससे मुक्ति के लिए
जितने आन्दोलन हुए, शायद उनकी नियति इतिहास हो जाने की ही रही है। व्यापम से
मुक्ति की बजाए अक्सर लोगों ने इसके खिलाफ खडे होने और संघर्ष करने वाले लोगों से
ही अपने को मुक्त करने को प्राथमिकता दी।
व्यापम इतनी खूबसूरती और आकर्षक तरीके से प्रवेश करता है कि लोग मुग्ध
हुए बिना नही रहते। व्यापम तरक्की की
गारंटी दिलाता दिखाई देता है। संचार,
सवास्थ्य, शिक्षा, खनन, नियुक्तियाँ, खरीद, कौनसा ऐसा क्षेत्र होगा, जहाँ व्यापम
मौजूद नही है। बिना व्यापम की मदद के कोई काम सम्भव नही है। व्यापम से छुटकारे के
लिए आप भले ही कितनी ही सरकारें बदलते रहें, नीतियों की कितनी ही तलवारें इस दानव
के हजार सिरों पर चलाई जाती रहें, इसका वध करना बहुत मुश्किल है। निश्चित ही रावण
की तरह व्यापम का भी कोई कमजोर हिस्सा जरूर होगा, जिस पर निशाना साध कर तीर चलाया
जा सकता है। लेकिन इसके लिए हमें इस लाभकारी ‘व्यवस्था पंगु मशीन’ के विरुद्ध लडने
की इच्छाशक्ति भी तो होनी चाहिए। भला कौन उस डाली को काटेगा जिस पर मीठे फल लगते
हों।
ब्रजेश कानूनगो
503,गोयल रिजेंसी,चमेली पार्क, कनाडिया रोड,इन्दौर-452018