Tuesday, May 13, 2014

नसतरंग के स्वर

नसतरंग के स्वर
ब्रजेश कानूनगो  
कुछ समय पहले एक लेख पढ़ने मे आया था जिसमें बरेली से बाँसुरी की बिदाई पर चिन्ता प्रकट की गई थी। लेख पढ़कर मुझे एक और दुर्लभ वाद्य 'नसतरंगऔर संभवतः उसके आखिरी 'उस्ताद वादक श्री बशीर खाँ की याद हो आई। जिस प्रकार बाँसुरी के निर्माण और स्वरों से न सिर्फ बरेली बल्कि समूचा संगीत संसार दूर होता जा रहा है उसी तरह नसतरंग के साथ ऐसा काफी अर्सा पहले घटित हो चुका है।

नसतरंग एक ऐसा वाद्ययंत्र रहा है जिसे बजाने के लिए वादक अपने गले की विशिष्ठ नसों पर इसे रखकर धमनियों में कंपन करता हैयही कंपन वाद्य में आवाज पैदा करता है। देवास मध्य प्रदेश के  उस्ताद बशीर खाँ एक ऐसे फनकार थे जो नसतरंग के  अस्तित्व  के  लिए पूरी उम्र जूझते रहे और अंततः दमे का शिकार होकर संगीत संसार से कूच कर गए। स्व़ बशीर खाँ के पुत्र के अलावा अजमेर के लोक कलाकार मनीराम पथरोड के चंद प्रदर्शनों को छोड़ दें तो अब न बशीर खाँ हैं और  नसतरंग का दुर्लभ वाद्य और न ही उसकी शास्त्रीय संगीत आधारित स्वर लहरियां कहीं सुनाई देती हैं।

जलतरंगनसतरंग या बाँसुरी जैसे भारतीय वाद्ययंत्रों और उनकी ध्वनियों का भारतीय संगीत से लोप होते जाना क्या  हम गंभीरता से ले पाए हैंक्या  बशीर खाँ जैसे वादकों के जाने के  बाद भारतीय संगीत संसार की यह जिम्मेदारी नहीं बनती कि नसतरंग जैसे दुर्लभ वाद्ययंत्र का संरक्षण तथा इसके  वादन की कष्टसाध्य साधना करने वाले कलाकारों को प्रोत्साहन के समुचित प्रयास कि जाएँ एवं नई पीढी के साधकों की तलाश और उन्हें शिक्षित करने की व्यवस्था के उपाय किए ाना चाहिए.

अपने जीवन काल में बशीर खाँ निरंतर इस प्रयास में थे कि उनसे यह कला कोई ग्रहण कर ले लेकिन वे सफल नहीं हो सके । उगते सूरज को पूजने की हमारी परंपरा ने बशीर खाँ की बूढ़ी नसों का महत्व नहीं समझा। नसतरंग की कष्टसाध्य एवं लंबी साधना की बजाए संगीत शिष्यों को लोकप्रियता का शार्टकट अधिक भाता रहा।वैसे भी इसके वादन में कलाकार की धमनियों और नसों के प्रभावित होने का खतरा भी बना रहता है।

कर्नाटक के श्री रामअप्पा के शिष्य उस्ताद बशीर खाँ ने अपनी कला का प्रदर्शन पंडित नेहरू से लेकर मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्री मंडलोई के समक्ष तथाअविभाजित भारत  कलकत्तालाहोर तथा इंदौर की अनेक संगीत सभाओं में तथा स्वतंत्र भारत के  अनेक संगीत जलसों में करके  प्रशंसा पाई थी।उनकी नसतरंग से भैरवीअहीर भैरव,तोडी सारंग,यमन,भीम पलासी जैसी कई स्वर लहरियां पूत्र्ट पड़ती थीं। लेखक सौभाग्यशाली रहा है  कि उनके अंतिम सार्वजनिक कार्यक्रम  जो पूर्व 'इन्दौर बैंककी देवास शाखा में वर्ष 1984 में हुआ था में उपस्थित था। बाद के वषों में वे अपनी बीमारी का इलाज अनेक सामाजिक संस्थाओं तथा व्यक्तियों की मदद से करवाते रहे।
उम्मीद की जाना चाहिए कि संगीत-संसार का कोई महर्षी नसतरंग की सुधि लेगा।  काश्मीर के लोकवाद्य संतूर के कल्याण के  लिए तो पं शिवकुमार शर्मा मिल गए हैं। नसतरंग तक पहुँचना किसी पंडित या उस्ताद के  लिए उसके  वादन की तरह ही शायद दुःसाध्य हो लेकिन संकल्प से क्या  नही हो सकता ।
ब्रजेश कानूनगो
503,गोयल रिजेंसी,चमेली पार्क, कनाडिया रोड, इन्दौर-452018 

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