व्यंग्य
अच्छे दिनों की पहली सुबह
ब्रजेश कानूनगो
शयन कक्ष मे अवस्थित पूर्व दिशा की खिडकी शायद रात को खुली रह गई होगी
अथवा पत्नी ने जल्दी उठकर खोल दी होगी। यकायक सुबह-सुबह की पहली किरण और ताजी हवा
का झोंका आया तो मेरी नींद खुल गई है। अब तक होता यह आया था कि पश्चिम दिशा की
खिडकी जिसका एक कांच टूटा हुआ था, उसमें से जब धूप आकर तंग करने लगती तब बिस्तर
छोडना ही पडता था। आज ही कुछ ऐसा हुआ है कि पश्चिम से उगने वाले सूर्य ने युगों
बाद पूर्व दिशा से अपनी दैनिक यात्रा का शुभारम्भ किया है। लगता है अच्छे दिन की
शुरुआत ऐसे ही होती है।
रोमांचित होकर मैं बहुत ही कुतुहल के साथ खिडकी के बाहर निहारने लगा
हूँ। अहा! अद्भुत! सब कुछ बदला हुआ है। राजा रवि वर्मा के चित्रों की तरह खिडकी के
पार कैनवास पर रंगों का जैसे इन्द्रधनुष बिखरा पडा है। सुमित्रानन्दन पंत की
कविताएँ बाहर प्रकृति के साथ अठखेलियाँ करती नजर आ रहीं हैं। गन्दी बस्ती की
झुग्गियों के रहवासियों की दिनचर्या और नाले की दुर्गन्ध के दुष्प्रभावों से दूर
रहने की खातिर अक्सर बन्द रहने वाली खिडकी जैसे आज किसी मायालोक का प्रवेश द्वार बन
गई है।
रातों-रात जैसे सुदामा के दिन और उनकी कुटिया बदल गए थे वैसे ही
झुग्गी-झोपडियों के स्थान पर बहुत खूबसूरत और साफ सुथरी टॉउनशिप की अटटालिकाएँ नजर
आ रहीं हैं। सामने बागीचा है और उसमें वे सब पेड-पौधे लहलहा रहे हैं जो अक्सर
कविताओं में प्रेम और रोमांस से हमें सराबोर कर देते हैं। खिडकी के पास से आम के
वृक्ष की टहनी गुजर रही है, जिस पर दो प्रेम पक्षी किलोल रत हैं.. हरे हरे पत्तों
के बीच से सूरज की रश्मियाँ छन छनकर शयन कक्ष की दीवारों पर मानों आँख मिचोनी खेल
रही हैं।
अरे! यह क्या..! किसने किया यह शंखनाद, मन्दिर में आरती का स्वर
गूंजने लगा है..। जरा ध्यान से सुनों... किसी मज्जिद से अजान के स्वर भी हवा में तैरने
लगे हैं..। आज कुछ अलग हैं ये रोज की आवाजें..। ओह..कैसा सुखद लग रहा है यह संगीत,
बिल्कुल स्वाभाविक। आज कबीर को ठेंगा दिखाते लाउडस्पीकरों से ईश्वर को नही पुकारा
जा रहा है। अब समझ लिया गया है शायद कि परवरदिगार बिन कानों के सुनने की क्षमता
रखता है।
यह कैसी पदचाप सुनाई दे रही है नीचे मार्ग पर..? शायद सज्जन लोग
प्रभात फेरी पर निकले हैं। एक लय है एक गान है.. बहुत गर्वीला और अनुशासित है यह
जत्था। आजादी के बाद जैसे स्वतंत्रता सेनानियों का कोई जुलूस निकल रहा हो। नई
अट्टालिकाओं से पुष्प वर्षा की गई है अभी-अभी। सडक पर फूलों को रोन्दते हुए आगे
निकल गया राष्ट्र्प्रेमियों का दल अपनी ध्वजा लहराते हुए। ऐसा लगता है अन्य विचारप्रेमियों ने अपने को
राष्ट्र्विरोधी मान लिया है और वे लोग दूसरे मुल्कों को कूच कर गए हैं, उन्हे पहले
ही चेतावनी दी जा चुकी थी कि यहाँ केवल एक देश –एक विचार के लोग ही नागरिकता के अधिकारी
होंगे।
बाथरूम में शावर चल रहा है..मुझे यों लग रहा है जैसे कालिदास के
नाटकों की नायिका किसी जलप्रपात की धारा में स्नानरत कोई श्लोक गुन-गुनाते हुए
अपनी केशराशि को सम्भालने के यत्न में तल्लीन है। स्नानागार का दरवाजा खुलता है और
आद्यस्नाता देवी शकुंतला बाहर निकलती है। उसकी कलाइयों में श्वेत मोगरे का गजरा है
और हाथों में सुराही जैसा पात्र। लजाती मुस्कुराती कहती है- आर्य ! आज दफ्तर नही
जाना है क्या? तिपाही पर रखी प्याली में केतली से चाय उंढेल कर वह लौट जाती है। आज
भरत की पाठशाला में ‘सेव-टायगर’ पर लेक्चर होना है। उसे तैयार करके ठीक समय पर
स्कूल भी तो भेजना है।
मैं बिस्तर से उठता हूँ और अच्छे दिन की पहली दोपहर और पहली शाम से
रूबरू होने की तैयारी में जुट जाता हूँ। हर रात के बाद मेरा पहला अच्छा दिन हर रोज
मेरी बाट जोहता रहता है।
ब्रजेश कानूनगो
503, गोयल रिजेंसी,चमेली पार्क, कनाडिया रोड, इन्दौर-452018
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