निराश आत्मा का संकट
ब्रजेश कानूनगो
मन भले ही मैला हो
लेकिन आत्मा निर्मल होनी चाहिए । कहा भी गया है आत्मा सो परमात्मा याने आत्मा ही
है जो परमात्मा तक पहुंचने का साधन बनती है। आत्मा की शुद्धता ईश्वर की प्राप्ति की
अनिवार्य शर्त है। पहुंचे हुए बाबा लोग आत्मा की पवित्रता पर इसीलिए जोर देते आए
हैं। आत्मा की पवित्रता का महत्व बताते बताते उनके भीतर ऐसी शक्तियों का उदय होता
है कि वे परमात्मा की अनुकृति से दिखाई
देने लगते हैं। वे कृपा करते हैं अपने भक्तों पर। उनका कहा शक्तियाँ सुनती हैं और
कष्टों पर बरस पडती हैं। उनकी आत्मा आज के गंगाजल की तरह पवित्र होती है।
आत्मा तो अनशन की
हिमायती होती है लेकिन मन सुख सुविधाएँ चाहता है। मन कहता है, अच्छा पहनें, अच्छा
खाएं, अच्छा धन्दा चले, बंगला हो, अपनी
खुद की कार हो । मन भ्रष्ट हो जाने को सदैव लालायित रहता है लेकिन आत्मा तो
परमात्मा के प्रेम में बेसुध न जाने किस संसार मे विचरती रहती है। समझ ही नही आता
कि क्या सही है क्या गलत है , बावली आत्मा मन की मुरादों को पूरा करने के चक्कर
में परमात्मा मे लीन होकर विष का प्याला भी अमृत समझकर पी जाती है।परमात्मा की राह
मे आत्मा क्या कुछ नही करती। निर्मल आत्मा
कभी कुत्ते को बिस्कुट खिलाने लगती है तो कभी महंगा मोबाइल फोन खरीद कर अपनी
परेशानी को डिलिट करने की कोशिश करती है।
समस्या की जड ही ये
कम्बख्त परेशानियाँ हैं। न ये परेशानियाँ होती न किसी समागम मे जाने की आवश्यकता
रहती। कोई हमारी सुनता ही नही है। न सरकार को हमारी कोई चिंता है, न समाज हमारे
कष्टों को समझता है। जाएँ तो जाएँ कहाँ। जो लूट रहा है वह भी परेशान है और जिसे
लूटा जा रहा है वह भी परेशान है। क्या करें ये परेशान लोग। परमात्मा की कृपा
चाहिए। आत्मा इतनी शुद्ध हो नही रही कि उन तक पहुंचा जा सके। एक यही रास्ता दिखाई
देता है निराश आत्मा को कि परमात्मा की प्रतिकृति(?) के पास अपनी अर्जी लगाई
जाए।
अब यदि समस्याओं के
निदान मे समोसे को हरी चटनी के साथ खाने के परामर्श से पीडित को लाभ पहुंचता है तो
किसी को क्या दिक्कत हो सकती है। कृपा हो, चाहे जैसे हो लेकिन कृपा होनी ही चाहिए।
ईश्वर की सब पर समान कृपा होती है। पता
नही मन्दिर मे एक रुपया चढाने वाले छीतू और चान्दी का छप्पर भेंट करने वाले सेठ
छतरमल का निवेदन ईश्वर के पास पहुंचता है या नही लेकिन एक बडी राशि बाबाजी के पास जमाकर
मुश्किलों से निजात पाई जा सकती है। अपने अकूत साम्राज्य के तथाकथित भगवान(बाबा)
का मन मैला हो सकता है लेकिन आत्मा की पवित्रता बडी निर्मल होती है।पवित्र आत्मा
निराश आत्माओं के दुख दर्द दूर करती रहतीं हैं।
हर तरफ से निराश
व्यक्ति आखिर कहीं तो दो बून्द आशा की तलाश मे जाएगा। यही तो निराश आत्मा का असली
संकट है। अब यह अलग बात है कि निराशा के इस विशाल समुद्र मे कुछ चतुर व्यापारी
मोतियों का दोहन करने मे सफल हो रहे हैं।
ब्रजेश कानूनगो 503,गोयल रिजेंसी, चमेली पार्क ,कनाडिया रोड,
इन्दौर-18
आत्माओं को चकाचक बनाने का धंधा चमक रहा है, आध्यात्मिक डिटर्जेंट बेचने वाले फल फूल रहे हैं...! करारा कटाक्ष!!
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