गर्व कीजिए मूर्खता पर
ब्रजेश कानूनगो
एक अप्रैल याने मूर्ख दिवस । एक दूसरे को तथाकथित
मूर्ख बनाने की गलत परम्परा। मूर्खता या मूर्ख को परिभाषित करना भी बडा कठिन कार्य
है । मूर्खता के प्रतीक के रूप में अक्सर गधे जैसे सीधे-सादे प्राणी को निशाना
बनाया जाता रहा है। प्रश्न यह पैदा होता है कि क्या वाकई गधा या गधापन मूर्ख और
मूर्खता का प्रतिनिधित्व सही रूप मे करते हैं। अगर गधे के बिना बोले बोझा ढोने के
गुण से मूर्खता परिलक्षित होती है तो फिर वे सब भी मूर्ख हुए जिन्होने किसी न किसी
तरह का भार अपने कन्धों पर उठाए रखा है। जो यह मानते हैं कि वे ही हैं जिनके
कन्धों पर सवार होकर देश आगे बढ रहा है, वे भी गदर्भ राज की बिरादरी मे सम्मिलित
किए जाने के योग्य हो जाते हैं। यह भार जो कन्धों पर बेताल की तरह सवार होकर जीवन
की अनेक अच्छी-बुरी कहानियाँ सुनाते हुए हमसे प्रश्न पूछता रहता है ,वैचारिक हो
सकता है, प्रशासनिक हो सकता है, राजनैतिक हो सकता है, व्यवस्थागत हो सकता है।
अर्थात वे सब जिनके ऊपर किसी भी प्रकार की जिम्मेदारी है वे सब मूर्ख हुए। न सिर्फ
गधे के साथ अपितु हरे व्यक्ति के साथ मूर्खता के सन्दर्भ मे यह ज्यादती ही है। अगर
समय असमय गधे के रैंकने की प्रवृति गधे को मूर्ख कहे जाने का कारण है तो यह
प्रवृत्ति तो आदमजात मे भी पाई जाती है,
अंतर सिर्फ इतना है कि यहाँ इसे
भाषण,प्रतिक्रिया,गुस्सा,दहाडना,हसंना,गुनगुनाना आदि कहा जाता है। कुछ लोग उल्लू जैसे चतुर और अन्धेरे मे भी
देखने की क्षमता रखने वाले तेज नजरोंवाले पक्षी को मूर्ख का प्रतिरूप मनते
हैं,जबकि लक्ष्मी का वाहन ही उल्लू को कहा गया है। इसका मतलब वे सब लोग जो नियमों
और कानून के सुराखों को अपनी तेज नजरों से तलाश करके लक्ष्मीपति बने हैं ,क्या
मूर्ख कहे जाने योग्य हैं?
दरअसल मूर्खता का रिश्ता किसी पशु या पक्षी की
बजाय समकालीनता से ज्यादा करीब का होता है। जिस काम को किए जाने के लिए समय का
आग्रह हो और आप उसके लिए प्रतिकूल कार्य करें तो वह मूर्खता कही जाएगी। मसलन
परीक्षाएँ चल रही हों, नकलपट्टी जोर शोर से जारी हो,लेकिन आप बहती गंगा मे हाथ नही
धोना चाहते और स्वज्ञान से प्रश्नपत्र हल करते हैं। जरा से सेवा शुल्क के भुगतान
से आप को मन चाही पोस्टिंग मिल सकती है लेकिन आप जमाने के दस्तूर से दूर रहते हैं।
चुनावों मे आपको लगता है कि आप ने सही प्रतिनिधि को चुना है लेकिन बाद मे महसूस
करते हैं कि वह आपकी एक मूर्खता ही थी , वोट का ठप्पा किसी भी निशान पर पडे ,आपके
द्वारा भेजा गया व्यक्ति संसद में जो करता है, वह किसी से छुपा नही रह गया है।
सच तो यह है कि समझदारी एक ऐसी तलवार है जो
मूर्खता की पारदर्शी म्यान मे रखी होती है।जिस डाली पर महाकवि कुल्हाडी चलाकर
मूर्ख कहलाए, उसी डाली के फूल महाकवि की विद्वता पर न्यौछावर हो गए। मूर्ख और
मूर्खता के महत्व को कभी भी कम नही आँका जाना चाहिए ।
ब्रजेश कानूनगो
503,गोयल रिजेंसी,चमेली पार्क, कनाडिया
रोड,इन्दौर-18
बहुत बढ़िया सर! हम मूर्ख थे जो अभी तक इस व्यंग्य लेख तक की दूरी नहीं नाप सके थे।
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