Friday, July 8, 2011

नेताओं के बयानों पर नहीं,नेतृत्व विकास पर चिंतन हो !


नेताओं के  बयानों पर नहीं,नेतृत्व विकास पर चिंतन हो !

बड़े नेताओं के बयानों के गिरते स्तर पर टिप्पणी करने से पहले एक कठिनाई यह भी है कि आखिर बड़े नेता हम किन्हें मानें? केव बड़े पदों पर या बड़ी जिम्मेदारियों का निर्वहन करने वाले हमारे प्रतिनिधि कया सचमुच बड़े कहलाने योग्य रह गए हैं? वर्तमान समय में मुझे तो ऐसा कोई नेता दिखाई नही दे रहा जिसे हम अपना सच्चा राजनीतिक लीडर कह सके
नेताओं के घटिया बयान आज सुर्खियों में दिखाई देतें हैं ,यह सब अचानक नही हो गया है। नेता जो बोलते हैं उसके पीछे पतन की एक लंबी डगर रही है। पिछले पाँच दशकों में हमारे समाज में धीरे-धीरे ऐसे परिर्वतन हुए हैं कि सामूहिक आचार-विचार और सहिष्णुता पर स्वार्थ की कालिख नें समझ की रोशनी को धुंधला बना दिया है। सफलता के शार्टकटों की आँधी दौड़ ने हमारी सारी रचनात्मक और सामाजिक परंपरा को ही ध्वस्त कर डाला है। हमारे बुजुर्ग और गुरुजन एक पूरी पीढ़ी को विचारवान, कर्मवीर तथा सहिष्णु बनाने में सक्षम होते थे, किंतु अब संस्कारों की यह नदी भी सूख सी गई है।मूल्यहीनता हमारे नए संस्कार हो गए हैं। संघर्ष,सच्चाईऔर ईमानदारी के लंबे रास्ते का चुनाव मूर्खता सिद्ध किया जाने लगा है। कोई पथप्रर्दशक,चिंतक या कोई आंदोलन गलत के विरोध में खड़ा होता है तो उसको नष्ट करने की सुनियोजित षड़यंत्र शुरू हो जानें में देर नही लगती। आज जो नेता बयानबाजी करते हैं तब उनके  शब्द किसी विचारधारा,नैतिक मूल्यों या सार्वजनिक कल्याण के वैचारिक विश्लेषण के परिप्रेक्ष्य नही होते बल्कि राजनीतिक स्वार्थ्य और मीडिया में सुर्खियाँ बटोरने की चाहत का नतीजा भी होते हैं।उनका टारगेट वर्ग भी हमारी वही आम जनता होती है जिसकी समझ का विकास भी इसी समाज में इन्ही स्थितियों के बीच हुआ है।
सच तो यह है कि नेताओं के बयानों पर नहीं ,सच्चे नेता गढ़ने की सही प्रक्रिया  और नेतृत्व विकास की उचित संस्थाओं के शुद्धिकरण एवं सार्थकता पर चिंतन होना चाहिए।

ब्रजेश कानूनगो
503,गोयल रिजेंसी,चमेली पार्क ,कनाडिया रोड,इंदौर-18

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