Wednesday, April 27, 2011

बोल्ड और बिंदास मूल्य



बोल्ड और बिंदास मूल्य

ब्रजेश कानूनगो

वित्त मंत्रालय के मुख्य सलाहकार कौशिक बसु ने सुझाव दिया है कि कानून में परिवर्तन किया जाए तथा जायज कार्य के लिए दी जाने वाली रिश्वत को मजबूरीवश दबाव में किया गया कार्य मानकर रिश्वत देनेवाले को अपराधी न माना जाए। कुछ दिनों पूर्व सर्वोच्च न्यायालय ने भी टिप्पणी की थी कि देश में बिना रिश्वत दिए कुछ नहीं होता। अन्ना हजारे ने आंदोलन किया कि भ्रष्टाचार रोकने के लिए कड़ा कानून बनाया जाए लेकिन उनके संघर्ष के जहाज में छेद करने के अभी से प्रयास शुरू हो चुकेँ हैं, मुझे शक है कि भ्रष्टाचार के महासागर से अन्ना के साथीयोँ को बेईमान मछलियों का शिकार करने में कामयाब होने दिया जाएगा । हमारे तंत्र मे भ्रष्टाचार इस तरह घुल मिल गया है कि अब इसको अलग करना अत्यंत कठिन है। बुखार यदि उतर ही नही रहा हो तो शरीर की तपन का लाभ लेते हुए रोटियाँ सेंक लेनी चाहिए। जिस बात से मुक्ति संभव न हो उसको अपना लेने में ही समझदारी है। भ्रष्टाचार को अब नैतिक मूल्य मानकर सामाजिक और प्रशासनिक मान्यता प्रदान कर देने में कोई बुराई दिखाई नही देती।
यों भी हमारे परंपरागत नैतिक मूल्यों का आज के समय में क्या औचित्य रह गया है। यदि हम कहें कि यह 'सत्य' है,यह 'सच्चाई' है तो वह क्या सचमुच सत्य या सच्चाई होगी। अब सच वह है जो कोई पॉलीग्राफर झूठ पकड़ने वाली मशीन से खोजे। सत्य वह है जो असत्य के कैनवास पर चित्रित हो। सत्य वह झूठ है जो पकड़ा न जा सके । सत्य वह है जो स्टिंग आपरेशन से उजागर हो । सत्य वह झूठी सीडी है जिसके साथ छेड़छाड़ की गई हो। सत्य झूठ के आकर्षक रैपर में लिपटी चाकलेट है,जो मधुर है। सत्य कभी कड़वा भी हुआ करता था किन्तु कड़वे सच पर आज स्वार्थ और मनोरंजन की चाशनी चढ़ा दी जाती है।
हमारे नैतिक मूल्य आचरण नहीं सिर्फ शब्द भर रह गए हैं। ईमानदारी को आचरण में अपनाने वाला क्या सचमुच सम्मान का पात्र रह जाता है? अगर कुछ थोड़ी बहुत ईमानदारी दिखाई देती है तो वह तथाकथित अवैध कारोबारों मे ही नजर आती है। बेईमानी के समुद्र में ईमानदारी की मछलियाँ बड़ी शान से तैर रहीं हैं। कोई यह कहकर आपको सीमेंट बेच रहा है कि वह विकास प्राधिकरण अथवा पीडब्ल्यूडी की है तो वह सौ प्रतिशत वहीं से उठाई गई होगी। कन्नोद से कूरवाई ट्रांसफर करवाने के लिए मंत्रीजी के चमचे ने पचास हजार लिए हैं तो निश्चित ही वह हो जाएगा।टैक्स बचाना चाहते हैं, मूल्य चुकाएँ,सामनें वाला नैतिक मूल्य का पालन करेगा और आपका काम हो जाएगा। बेईमानी के बसंत मे सूरजमुखी के फुल जरूर खिलते हैं।
पुस्तक बाजार की किसी गुमटी पर कल की परीक्षा के प्रश्नपत्रों की प्रतियाँ बेची जा रहीं हैं तो वे कल परीक्षा हॉल में परिक्षार्थियों को निश्चित वितरित की जाएँगी। सब कुछ व्यवस्थित है। गुमटीवाला ईमानदारी से असली माल बेचता है। देखने समझनेवाले पूरी ईमानदारी से अपनी आँखें बंद कर लेते हैं। राडिया हो या राजा सबने अपना काम पूरी ईमानदारी से किया है। हुआ सिर्फ इतना है कि नए कानून के आने से पहले, रिश्वत को वैधानिक मान्यता मिलने के पहले पुरातन मूल्यों के प्रकाश में उनकी कारगुजारियाँ मीडिया के सामने आ गर्ईं।
प्रगति का दूसरा नाम परिवर्तन होता है। विकास के इस महत्वपूर्ण समय में नैतिकता,ईमानदारी,सच्चाई,सदाचार,सज्जनता, शालीनता जैसे मूल्य पुराने और कालातीत प्रतीत होते जा रहे हैं। नए बिन्दास और बोल्ड मूल्यों को मान्यता देने के लिए विचार करने का शायद यह सही वक्त होगा। कौशिक बसु के सुझावों से भी आगे बढ़कर अब सोचा जाना चाहिए। आगे आपकी मर्जी।
ब्रजेश कानूनगो
503,गोयल रीजेंसी ,चमेली पार्क ,कनाडिया रोड ,इंदौर-18

2 comments:

  1. बहुत बढ़िया ! रिश्वत को वैध करने का सुझाव सुनकर यही कहा जा सकता है कि "व्हाट एन आइडिया से जी !" -ओम वर्मा

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