Sunday, May 1, 2011

विसंगतियों से उड जाती है उनकी नींद




विसंगतियों से उड जाती है उनकी नींद

ब्रजेश कानूनगो

मोहल्ले के उस सूने मकान में बरसों बाद मैंने रोशनी देखी तो थोडी जिज्ञासा हुई। दस बरस पहले मेरे मित्र साधुरामजी वहाँ रहा करते थे। देश- विदेश,समाज-संस्कृति और व्यवस्था की विसंगतियों को लेकर अक्सर हम चर्चा करते थे। कभी सहमत होते तो कभी असहमत लेकिन हमारी दोस्ती मे कभी कोई दूरी नही आई। प्रतिभा पलायन की पिछली बाढ में जब उनका बेटा बह गया तो मजबूरन साधुरामजी को भी अमेरिका जाना पडा।
पहले अक्सर साधुरामजी सुबह-सुबह अखबार हाथ में थामें किसी खबर से उत्तेजित मेरे घर चले आते थे लेकिन अबकी बार बरसों बाद उनके घर रोशनी देखकर मै ही वहाँ पहुँचा।मुझे देखते ही वे उठ खडे हुए और मुस्कुराते हुए गले लगा लिया। वे वही साधुरामजी थे,चेहरे की चमक जरूर थोडी कम हो गई थी बाकी सब पहले जैसा ही था।
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क्या बात है साधुरामजी अंमेरिका रास नही आया,लौट आये।' मैने बातचीत को आगे बढाने की गरज से पूछ लिया।
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सोचा तो था बेटे के पास रहूँगा, अमेरिका को जानूँगा समझूँगा समय निकल जायेगा और बेटे बहू को भी मेरा विश्वास रहेगा।लेकिन यह मेरा भ्रम ही था। यहाँ अपने देश और अपने लोगों की बात ही वुत्र्छ और है, मैं लौट आया।' वे बोले। मैने उनके चेहरे की चमक में आई कमी का राज जान लिया था।
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लेकिन साधुरामजी आप अपने देश और शहर में भले ही लौट आए हैं लेकिन आपके आने के पहले ही अमेरिका यहाँ आ चुका है। दस सालों मे वही सब यहाँ है जो वहाँ है।' मैने कहा।
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तुम भौतिक और आर्थिक पक्ष की बात कर रहे हो,मै मानवीय और भावनात्मक संदर्भों मे कह रहा हूँ कि हमारे यहाँ अभी भी मूल्यों का महत्व बचा हुआ है।' वे बोले।
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साधुरामजी,आप आज ही लौटे हैं,वहाँ अमेरिका के मीडिया में भारत की खबरें य-कदा ही देखने -पढने को मिलती होंगी,अब जब आप यहाँ के अखबार पढेंगें तब आपको पता चलेगा।'मैंने कहा।
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हाँ,मैने अंखबार वाले को बोल दिया है,काफी नए अखबार आ गये हैं अब तो। बडा बदलाव आया है अपने शहर मे।अच्छा लगता है देखकर। आते हुए देख रहा था,बडे सुन्दर चौराहे बने हैं। सडकेँ  भी चौडी हो गर्ईं हैं।' वे बोले।
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हाँ, इसी रास्ते और चौराहों से गुजरकर ही तो आ रहा है अमेरिका। प्लास्टिक के पेड लगे हैं,शापिंगमॉल बने हैं,मल्टिप्लेक्स सिनेमा शुरू हुए हैं। ' मैंने उनकी जानकारी में वृद्धि करते हुए कहा। ' तुम नही बदले अभी तक,अपने मतलब से बात को घुमा देते हो। मै भौतिक बदलाव की बात नही कर रहा,मानसिक परिवर्तन की बात कर रहा हूँ। विकास देखकर मन को शान्ति मिलती है।' साधुरामजी बोले।
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मै भी वही बात कर रहा हूँ,इस विकास के बाद लोगों की मानसिकता में ही परिवर्तन आया है। छोटे दुकानदार, ठेलागाडी चलाकर अपनी रोजी कमानेवालों गरीबों की आमदनी में कमी आई है। दिन भर पसीना बहाकर दो पैसे कमानेवालों की बजाए लोग शापिंग मॉलों से सामान खरीद लाते हैं।' मैं थोडा उत्तेजित हो गया।
साधुरामजी ने पानी का गिलास मेरी और बढा दिया,बोले-'अंरे बैठो तो सही, इत्मिनान से बातें करेंगें-यह बताओ और क्या समाचार हैं इधर के '
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समाचार क्या हैं साधुरामजी, जिन मानवीय मूल्यों की आप बात करते हैं,अब उन्हीं पर विश्वास नहीं होता।पतन ऐसा हुआ है कि बेटी अब्बा का कत्ल करने को मजबूर है। सास नई नवेली बहू के टुकडे कर डालती है। छुटभैये गुंडे पुलिस थानों का घेराव कर लेते हैं।चौराहे पर स्कूल  बस में आग लगा दी जाती है,लेकिन हम लोग किसी सच्चे नेता और सही आन्दोलन की प्रतिक्षा करते रह जाते हैं।' मैने सौफे  पर बैठते हुए कहा।
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हाँ, सुना है मैने । यहाँ वेत्र् नेताओं ने तो बस अंपने जन्मदिन मनवाने और बडे बडे होर्डिंग लगवाने को ही आंदोलन समझ रखा है।' साधुरामजी ने अंपनी आँखों को थोडा सा फैलाते हुए कहा।
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नहीं ऐसा नही है,राजनीति का भी यह एक प्रकार से आधुनिकीकरण है। अब नेतागण बेचारे अपने क्षेत्रों मे कब तक घूमेंगे और नागरिको से मिलेंगे।समय की बचत की दृष्टि से चौराहों पर तस्वीरें टाँगकर ज्यादा से ज्यादा लोगों की नजरों में बने रहने का प्रयास करना क्या कम है।' मैने समझाने की कोशिश की।
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और नही तो क्या ,ईश्वर भी तो केलेंडरोँ और चित्रों के जरिए लोगों के दिलों में बसतें हैं।   'अबकी बार साधुरामजी की चुटकी से मैं भौचक्क रह गया। सामान्यतः वे नेताओं का मजाक नहीं बनाते।
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क्या बात कही साधुरामजी आपनें।' मैने उनके हाथ पर हाथ मारते हुए कहा।'चलिए अब आप आ ही गये हैं,मैं भी वैचारिक बहस को तरस गया था। मित्र तो बहुत हैं लेकिन सबको राष्ट्र और अपने विकास की इतनी हडबडी है कि विचार कोई नहीं करना चाहता।स्वार्थपूर्ति के लिए लक्ष्य बनते हैं और काम आगे बढ जाता है। चाहे दफ्तरों में कम्प्यूटरीकरण की बात हो या शहर के विकास का मास्टर प्लान,सभी जगह हडकंप  मचा हुआ है। मोबाइल घनघना रहे हैं लेकिन मन की बात कोई नही सुनता। ' मैंने अंपनी निराशा व्यवस्र्त की और घर लौट आया।
मुझे मालूम था साधुरामजी रातभर सो नहीं पाए होंगे। मुझे खुशी है कि वे लौट आए हैं। ऐसे लोगों की हमें अभी बहुत जरूरत है,बेहूदगियों और विसंगतियों को देखकर जिनकी नींद उड जाती हो।


ब्रजेश कानूनगो

 

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