Monday, July 6, 2015

डिजिटल के भरोसे में


डिजिटल के भरोसे में 
ब्रजेश कानूनगो  

साधुरामजी इन दिनों बहुत खुश हैं. बायपास पर बनी नई-नई टाउनशिप में आये थे तो अक्सर बहुत दुखी रहते थे. पुराने शहर और दोस्तों से दूर होकर उनका मन और तन कमजोर पड़ता जा रहा था. लेकिन जब से जन्मदिन पर अमेरिका में बसे ग्रीनकार्ड धारी सुपुत्र ने एक टेबलेट ऑनलाइन उनको भेंट कर दिया है उनके सारे दुःख दूर हो गए हैं. उनका अकेलापन देश के बुरे दिनों की तरह चला गया है . पूरी दुनिया उनकी हथेलियों में सिमट आईं है. उँगलियो के इशारे पर मनचाहे वातावरण, दोस्तों के बीच दिन भर बतियाते रहते हैं.

‘साधुरामजी आजकल घूमने के लिए आप मुझे लेने नहीं आते, बल्कि मुझे आपके घर आना पड़ता है..कहाँ व्यस्त रहते हैं?’ रोज की तरह शाम को जब हम टहलने निकले तो मैंने चर्चा शुरू करते हुए कहा.
‘अरे भाई , इन दिनों एक कविता कार्यशाला में नवलेखकों को लिखने के सूत्र समझाने में लगा रहता हूँ. छोड़ते ही नहीं देर तक. आप लेने आते हैं तब पता चलता है कि शाम हो गयी है, सैर को जाना है.’ साधुरामजी ने मुस्कुराते हुए कहा.
‘लेकिन आप तो अपने फ्लेट से निकलते ही नहीं और नहीं किसी को आपके यहाँ आते-जाते देखा है, तब ‘कविता-कार्यशाला’ की बात कुछ समझ में नहीं आई!’ मैंने जिज्ञासा व्यक्त की.
‘ये नई चीज है. ओन लाइन कविता कार्यशाला है. वाट्स एप समूह पर चलती है. कविता पर बात होती है, रचना प्रक्रिया से लेकर साहित्य के सरोकारों तक बात होती है यहाँ. इसी में लगा रहता हूँ. तुम भी इस के सदस्य बन जाओ.. मैं एडमिन को तुम्हारा नंबर भेजता हूँ.’ साधुरामजी ने उत्साह से कहा.
‘नहीं-नहीं!  साधुरामजी, मैं तो वैसे ही मस्त हूँ. अखबार और किताबें ही बहुत हैं मेरे लिए. मुझसे यह सब नहीं होगा.’ अपनी अरुचि दर्शाई तो उन्होंने मेरे पिछड़ेपन पर हिकारत से मुंह बिचकाया और बोले- ‘अरे भैया जरा जमाने के साथ चलो..ऐसे तो वहीं के वहीं रह जाओगे..देखो देश ‘डिजिटल इंडिया’ बनने की राह पर चल पडा है और तुम अभी तक पुरानी पीढी के मोबाइल को कान से लगाए बैठे हो. स्मार्ट बनों और स्मार्ट फोन और टेबलेट के रास्ते अपना विकास करो..अपने और देश के सपने पूरे करो..इसी रास्ते से होकर खुशहाली आयेगी..हम विकसित देश की पंक्ति में आ खड़े होंगे !’
‘क्या होगा डिजिटल हो जाने से ? यह सब जुमले बाजी है बस और कुछ नहीं.’ मैंने कहा तो वे चिढ गए.
‘हर अच्छी चीज का विरोध करने की तुमको आदत हो गयी है. जब हमने सेटेलाईट अंतरिक्ष में भेजा था तब भी तुमने विरोध किया था.अब वही देखो कितनी मदद कर रहा है हमारी. हजार चैनल हैं हमारे घर में. मौसम की जानकारी है. सबको लाभ मिल रहा है.’ साधुरामजी खबरिया चैनल पर आये पीएम के उद्बोधन को दोहराने लगे.
‘हाँ, मैं मानता हूँ मोबाइल क्रान्ति से परिवर्तन आया है, डिजिटल होने से एक छोटे से मोबाइल में पूरा भारत सिमट जाएगा..सरकारी तंत्र आपके इशारों पर काम करने लगेगा...  लेकिन प्रश्न तो करना ही पड़ेंगे साधुरामजी.’ मैंने कहा.
‘करिए ना प्रश्न कौन मना कर रहा है. यह एक ऐसी बात है जिससे चुटकियों में आपकी कठिनाइयां दूर हो जायेगी. अस्पताल में आपको लाइन में नहीं लगना होगा, डॉक्टर आपकी बीमारी की दवाई घर बैठे लिख भेजेगा. किसान को खेती की सारी जानकारियाँ खेत खलिहान में ही उपलब्ध हो जायेगी..बीज खाद और तकनीक की जानकारी मिल जायेगी..बहुत सी सुविधाएं मिलेंगी इससे...!’ साधुरामजी टीवी बहस के किसी प्रवक्ता की तरह जोश में बोल रहे थे.
‘साधुरामजी, डिजिटल हो जाने से समय पर बारिश होगी इसकी कोई गारंटी नहीं मिल जाती. मोबाइल लगाने से डॉक्टर अस्पताल में फोन उठा लेगा और गाँव में दवाइयाँ उपलब्ध रहेंगी ही, मुझे विश्वास नहीं हो रहा.’ मैंने आशंका व्यक्त की.
‘भरोसा करना सीखो भाई ! दुनिया हम पर भरोसा कर रही है तुम भी करो ज़रा.’ उन्होंने आश्वस्त करना चाहा.
मैं दुनिया के साथ हो गया. पूरे भरोसे के साथ घर लौटकर बत्ती का स्विच दबाया, बिजली गुल थी. शिकायत दर्ज करने के लिए फोन उठाया..वह शवासन में लीन था . मोबाइल में देखा..सिग्नल शून्य में विलीन हो गए थे. ब्राडबेंड मेरे यहाँ नहीं था.  उम्मीद है साधुरामजी लिंक की मंथर गति से जूझते हुए दुनिया को अपने ड्राइंग रूम में लाने में सफल हो गए होंगे.

ब्रजेश कानूनगो
503, गोयल रिजेंसी,चमेली पार्क, कनाडिया रोड, इंदौर -452018  

   

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