पहला पदक गणराज को
ब्रजेश कानूनगो
पुराणों मे संकेत मिलते हैं कि गणेशजी ओलिम्पिक खेलों के पहले पदक
विजेता थे। दरअसल गणेशजी एक बहुत अच्छे
एथेलिट भी थे लेकिन उनका बुद्धिमान होना उनकी ख्याति का प्रमुख कारण बन गया। यह भारतीय खेलों के लिए
ठीक नही कहा जा सकता जब एक खिलाडी की बौद्धिकता उसके व्यक्तित्व पर इस कदर हावी हो
गई कि उसके खिलाडी पक्ष का मूल्यांकन ही नही हो पाया। जो थोडा बहुत इस सन्दर्भ में
सामने आया है,उससे पता चलता है कि गणराज बडे अच्छे वेट लिफ्टर और बुद्धिमान धावक भी
रहे हैं। नि:सन्देह यह प्रश्न खडा हो सकता है कि जब गणेश वेटलिफ्टर थे, तो धावक
कैसे हो गए? भारी भरकम शरीर के साथ उनके धावक होने की बात आसानी से गले नही उतरती।
परंतु सच्चाई यही है कि वेटलिफ्टर होने के बावजूद पदक उन्हे दौडने के लिए ही मिला
था।
शंकरजी के दोनो बेटे खेल-कूद मे बहुत रुचि रखते थे। इधर गणेश
वेटलिफ्टिंग का अभ्यास करते उधर कार्तिकेय दौडने की प्रैक्टिस किया करते थे।
बच्चों की रुचि को बढावा देने के लिए महादेव ने खेल महोत्सव का आयोजन किया। यह
गणेशजी और वेटलिफ्टिंग का दुर्भाग्य था कि गणेशजी के भारवर्ग में कोई अन्य
प्रतियोगी ही नही आया, अत: वेट लिफ्टिंग प्रतियोगिता ही रद्द करना पड गई। गणेशजी
के पास कोई विकल्प नही था, मजबूरी में उन्हे दौड प्रतियोगिता मे उतरना पडा। कहा
जाता है उन दिनों मैराथन के लिए पूरी पृथ्वी की दौडकर परिक्रमा लगानी पडती थी।
गणेश अपना सामर्थ्य जानते थे। भारी भरकम शरीर के साथ दौडने की बजाय उन्होने अपनी
बुद्धि का उपयोग करना उचित समझा। भगवान शिव और देवी पार्वती प्रतियोगिता के
निर्णायक थे। शंकरजी ने डमरू बजाया और धावक दौड पडे। बुद्धिमान गणेशजी ने
निर्णायकों की ही परिक्रमा शुरू कर दी। उन दिनों खेलों में कोई नियम वगैरह तो होते
नही थे। यह कहीं नही बताया गया था कि पृथ्वी से क्या तात्पर्य है। गणेशजी का तर्क
था कि माता-पिता का चक्कर लगाना, पृथ्वी के चक्कर लगाने जितना ही महत्वपूर्ण और
प्रभावी है। बुद्धि कौशल में गणेशजी के आगे कौन टिक सकता था। उनका तर्क काल विशेष
में अकाट्य था। निर्णायकों को गणेशजी के पक्ष मे निर्णय देना पडा। इस तरह ओलिम्पिक
का पहला पदक गणेशजी के नाम हो गया।
पौराणिक ओलिम्पिक में हमारे खिलाडियों ने बडा नाम कमाया है। तीरन्दाजी
में अर्जुन और एकलव्य, भारोत्तोलन और
डिस्क थ्रो में श्रीकृष्ण, ऊंची और लम्बी कूद में श्रीहनुमान ,कुश्ती में भीम और
दुर्योधन इत्यादि अपने समय के धुरन्धर खिलाडी रह चुके हैं। अर्जुन का तीर मछली की
आँख भेद देता था। हनुमान की कूद समुद्र लांघ जाया करती थी। श्रीकृष्ण एक उंगली पर
पर्वत उठा लेते थे। उम्मीद तो यही है कि आधुनिक ओलिम्पिक खेलों में भी हमारे खिलाडी
इस गौरवशाली परम्परा को जरूर कायम रखेंगे।
ब्रजेश कानूनगो
503,गोयल
रिजेंसी,चमेली पार्क, कनाडिया रोड, इन्दौर-18
bahut accha likha hai uncle, humare khiladion ke liye itne sare prerana sotra hain, fir bhi hum pichad rahe hain.Ganesh ji aur Hanumanji ki zarurat hai hum sabhi ko.
ReplyDeleteधन्यवाद, संकल्प जी।
Deleteबहुत शानदार !ओलिम्पिक पर आपका 'अधबीच' में 'जब होंगे ओलिम्पिक हमारे अंगना'भी अभी तक स्मृति में बना हुआ है। यह भी वैसा ही चुटीला व्यंग्य है ।
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