व्यंग्य
श्वेतपत्र का सच
ब्रजेश कानूनगो
सिंगापुर के प्रधानमंत्री सचमुच कलापारखी हैं
जिन्हे हमारी सरकार के कालेधन पर जारी श्वेतपत्र में कुछ दिखाई दिया। उन्होने इस
पर आपत्ति जताते हुए कहा है कि इस श्वेतपत्र में सिंगापुर का उल्लेख चोरों की
पनाहगार की तरह हुआ है।
दरअसल जो लोग थोडा बहुत रंगों या फोटोग्राफी की
समझ रखते होंगे वे ‘कांट्रास्ट’ की अवधारणा को भी समझते होंगे । अब देखिए यदि रात
को आसमान की कालिमा और सितारों के बीच कांट्रास्ट नही होता तो क्या हम उस अद्भुत वातावरण
और खूबसूरत चान्दनी का आनन्द उठा सकते थे।
कालेधन पर श्वेतपत्र जारी करके सरकार जब कांट्रास्ट का प्रभाव पैदा करती है तब वह कला में उसकी समझ को भी प्रमाणित करता है। चूंकि धन जो है वह काला है, इसलिए उसे उजागर या स्पष्ट करने के लिए सफेद से बेहतर कोई पृष्ठ्भूमि हो ही नही सकती ,इसलिए श्वेतपत्र लाया जाता है । रेड पेपर या ब्लेक पेपर भी सदन में प्रस्तुत किया जा सकता है ,लेकिन इसमें बडा झमेला खडा हो सकता है । पहले तो ब्लेक पेपर में उतना कांट्रास्ट नही बनता। ब्लेक में ब्लेक मनी का सही सही चित्र उभर नही पाता। जनता को लगता है कि सरकार की नीयत ठीक नही है और वह कालेधन के प्रश्न पर ईमानदार नही है। वैसे भी आधी रात के हंगामें के अनुभव के बाद सरकार कोई काम अन्धेरे में नही करना चाहती है। रेडपेपर प्रस्तुत करने का तो प्रश्न ही पैदा नही होता। बहुत वर्षों तक सुनते रहे थे-‘ये लाल रंग कब मुझे छोडेगा..’ । वर्तमान सरकार का मानना है कि लाल रंग से जितना दूर रहें उतना अच्छा। हंसिया हो या हथौडा, ग्लोबलाइजेशन के दौर में लाल रंग के ऊपर ये निशान सरकार को बडे खतरनाक नजर आते रहे हैं। सो, कालेधन पर श्वेतपत्र लाना ही सरकार की मजबूरी होती है और एकमात्र विकल्प भी।
सरकार विरोधी विशेषज्ञ कहते हैं कि कालेधन पर जो श्वेतपत्र जारी किया गया उसमें कमियाँ हैं। कांट्रास्ट मे दोष के कारण विषयवस्तु की छबि उभर ही नही पा रही। कुछ का मानना है कि यह एक कोरा कागज है। न तो इसमें कालेधन के स्वामियों के नाम उजागर हुए हैं और नही इन्हे भारत मे वापिस लाने के कोई उपाय सुझाए गए हैं। लोकपाल और लोकायुक्त से कालेधन पर शिकंजा कसने की बात तो कही गई है लेकिन लोकपाल विधेयक के फुटबाल को बडी चतुराई से मैदान के बाहर किक करने के प्रयास हो रहे हैं । सबसे जोरदार प्रतिक्रिया तो यह आई कि यह श्वेतपत्र ‘बिकनी’ की तरह है जो महत्वपूर्ण हिस्सों को छुपाकर कम महत्व की चीजों को उजागर करता है। अब यहाँ बिकनी के बारे में स्पष्ट करना तो शायद पाठकों की समझ के प्रति अन्याय ही होगा। जिस देश में हमारे प्रतिनिधि सदन में स्त्री सौन्दर्य का गहन अध्ययन करते हों वहाँ स्त्रियों की मामूली पौषाख के बारे में बताना उचित नही होगा। मैं तनिक विपक्ष के वरिष्ठ नेता के इस बयान से असहमत हूँ। श्वेतपत्र यदि ‘बिकनी’ की तरह है और महत्वपूर्ण हिस्सों को छुपाकर कम महत्व के हिस्सों को प्रदर्शित करता है तो वह बिकनी की तरह कैसे हुआ? बिकनी में हमारे शरीर के हाथ,पाँव,सिर आदि पूरी तरह दिखाई देते हैं। इसी हाथ में ‘पंजा’ भी होता है।
अब यह बडे संतोष की खबर है कि अंतत: सरकार की कलाकारी और श्वेतपत्र के कांट्रास्ट को सिंगापुर के प्रधानमंत्री ली सिएन लूंग ने ठीक से समझा और अपनी प्रतिक्रिया से मनमोहनसिंहजी को अवगत कराया ।
ब्रजेश कानूनगो
503,गोयल रिजेंसी,चमेली पार्क कनाडिया रोड,
इन्दौर-18