व्यंग्य
विद्युत विहीनता का स्वागत करें
ब्रजेश कानूनगो
मेरा मानना है कि अगर बाँसुरी की धुन कष्टकारी हो तो बाँस की
फसल पर कुल्हाडी चला दो। न रहेगा बाँस न बजेगी
बाँसुरी ।
अब समय आ गया है जब बिजली के बंधनो से हमें मुक्त हो जाना चाहिए।
इस मुक्ति में ही हमारा कल्याण निहित है। सच तो यह है कि बगैर बिजली के हम ज्यादा प्राकृतिक हो सकेंगे और
अनेक समस्याओं से सहज ही छुटकारा प्राप्त कर लेंगे । सच तो यह है कि अब हमें विद्युत विहीनता की दिशा में कदम बढाने चाहिए।
बिजली नही होने से पानी की टंकी नही भरी जा सकेगी । नल श्रीहीन
हो जाएँगे । सूने पनघट फिर आबाद होंगे । घट्टी पीसकर और पनघट यात्रा से महिलाएँ अपने
शरीर को स्लिम और आकर्षक बनाने में सफल होंगी । हेल्थ क्लबों और ब्यूटी पार्लरों पर
ताले लग जाएँगे । खेतों में मोटरों की घर्र-घर्र की बजाए रेहट का कर्णप्रिय संगीत गूँज
उठेगा । किसान का बेटा मस्त होकर गा उठेगा - ' सुनके रेहट की आवाजें
यूँ लगे कहीं शहनाई बजे ' ।
विद्युत विहीनता पर्यावरण के हित में होगी । मशीनीकरण समाप्त होगा । ध्वनि एवं वायु प्रदूषण से हमें मुक्ति मिल जाएगी । हस्तकला
को प्रोत्साहन मिलेगा । बेरोजगारी की राष्ट्रीय समस्या में कमी आएगी । महात्मा गाँधी,जयप्रकाश नारायण और लोहियाजी के सपने साकार होंगे । जुलाहे,बुनकर,चर्मकार,काष्टकार तथा सदियों से पिछडी जातियों और वास्तविक बुनियादी
उद्यमियों को रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे । वे ऊपर उठ सकेंगे। अंत्योदय होगा ।
इतिहास के पन्ने गवाह हैं कि अधिकांश महापुरुष चिमनी अथवा लालटेन
की रोशनी में पढकर ही विद्वता की पराकाष्ठा
तक पहुँचे थे । निश्चित ही चिमनी, मोमबत्ती या लालटेन
के प्रकाश में वह गुण है जो किसी सामान्य व्यक्ति को प्रतिभावान बनाता है ।
जिस तरह स्वस्थ शरीर के लिए हमें प्रकृति के साथ चलना चाहिए
इसी तरह प्राकृतिक स्थितियाँ हमारे मन को निर्मल,पवित्र बनाकर ईश्वर
के करीब पहुंचाती हैं। बिजली के बल्बों की कृत्रिम रोशनी के मोह को त्याग कर हृदय मे आस्था की ज्योत
जलाना चाहिए। भीतर के दिव्यप्रकाश के आगे सरकार
की यह दो टकिया दी रोशनी कहाँ लगती है। सुख,समृद्धि और शांति का
अनमोल खजाना पाने के लिए विद्युतविहीनता का पुरातन,सनातन और स्वयम् सिद्ध
मार्ग ही हमें सत्य के समीप पहुंचा सकता है।
ब्रजेश कानूनगो
503,गोयल रिजेंसी,चमेली पार्क,कनाडिया रोड,इन्दौर-18