आतंकवाद के विरुद्ध हमारी रणनीति क्या होगी ?
ओसामा के अंत के बाद हमारे यहां ऐसी आवाजें सुनाई दे रहीं हैं कि हमारे मोस्ट वांटेड दाऊद और मौलाना अजहर मसूद के अंत के लिए भारत को भी अमेरिका जैसी कार्रवाई करनी चाहिए। मेरा मानना है कि यह विचार बड़ा आक्रामक और जोशपूर्ण तो अवश्य दिखाई देता है किंतु वास्तविकता में महज नारे बाजी से कुछ ज्यादा नहीं होगा। अमेरिका और पाकिस्तान का गणित अलग था, भारत और पाक की केमिस्ट्री कुछ भिन्न है। न तो हमारे पास पुख्ता जानकारियाँ हैं और न ही पर्याप्त क्षमता एवं व्यापक जनसमर्थन। पाकिस्तान के ईमानदार सहयोग के बगैर किसी भी कार्रवाई का अपेक्षित परिणाम आना संदिग्ध ही होगा। दोनों मुल्कों के शाँति पसंद अवाम को भी ऐसी कोई कार्रवाई अधिक रुचिकर नहीं होगी।
भारत की चिंता तो यह भी है कि उसे पाकिस्तान की आतंकवाद समर्थक मानसिकता से भी मुकाबला करना है। परमाणु ताकत रखने वाले देशों मे से पाकिस्तान ही एकमात्र देश है जहाँ परमाणु बटन सेना के पास है तथा जिसकी आड़ में वह दशहतगर्दी फैलाता रहता है। इसमे कोई शक नहीं है कि पाकिस्तान के अंदर अलकायदा को समर्थन देनेवालों का एक बड़ा वर्ग अब भी मौजूद है। लादेन भले ही इसका एक प्रमुख चेहरा रहा हो किंतु पिछले समय में अन्य चेहरों ने अपनी ताकत नहीं ब़ढ़ाई होगी ऐसा मान लेना शायद बहुत बड़ी भूल होगी। अमेरिका न तो मर्यादा पुरुषोत्तम है और नही उसनें आतंकवाद की नाभि में निशाना लगाया है। सच तो यह है कि ओबामा नें 9/11 का बदला ओसामा को मार कर लिया है। ओसामा के सफाए के लिए अमेरिका ने भी एक तरह की आतंकी कर्रवाई ही की है। किसी देश की सरकार,सैन्य-प्रशासन को कानों कमांडो अचानक उनकी कानो-कान खबर न हो और अमेरिकी कमांडो उनकी धरती पर संहार कर जाएँ, इसे हम उनकी सद्भावना यात्रा तो नहीं कह सकते।
अब संभावना तो यह भी बनती है कि ओसाम समर्थक और अलकायदा के अनुयायी लादेन की हत्या को एक चुनौती मानकर नए उत्पात की तैयारी में लग जाएँ। अलकायदा और ऐसे ही अन्य आतंकी संगठनों को हतोत्साहित करने के लिए उचित होता कि दुनिया के इस मोस्ट वांटेड अपराधी को जिंदा गिरफ्तार करके उसके गुनाहों को उजागर किया जाता तथा मुकदमा चलाकर उसे सजा सुनाई जाती।
बहरहाल , ओसामा बिन लादेन के खात्में के साथ दुनिया से आतंकवाद के सफाए की खुशफहमी नहीं पाली जा सकती। जैसा कि प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह ने कहा है आतंकवाद से निपटने की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम अवश्य है लेकिन आतंकवाद से निपटने की हमारी तकनीक और रणनीति क्या होनी चाहिए ? इसपर गंभीरता से विचार होना चाहिए। लादेन की मौत पर जो वातावरण बना है उसका लाभ लेते हुए हमारी सरकार ने इस बीच अपनी राजनीतिक दृढ़ता मे आई उस कमी को भी यदि दूर कर लिया , जिसके कारण कसाब जैसों को राहतें मिलती रहीं हैं तो बहुत बेहतर होगा।