जनता का मन जीतना जरूरी जैतापुर में
ब्रजेश कानूनगो
विडम्बना है कि जिस वक्त पूरा संसार भयावह चेर्नोबिल परमाणु हादसे की 25 वीं बरसी पर शोक मनाते हुए ईश्वर से घटना की पुनरावृत्ति न होने की कामना कर रहा था उसी वक्त भारत सरकार घोषणा कर रही थी कि जैतापुर परियोजना रुकेगी नही। सरकार ने आश्वासन दिया कि परियोजना का हरेक रिएक्टर स्वतंत्र रूप से सुरक्षित होगा तथा परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम में पूरी पारदर्शिता रखी जाएगी,इसके लिए संसद में स्वायत्त परमाणु नियमन प्राधिकरण बनाने हेतु एक विधेयक भी लाया जाएगा।
महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के जैतापुर में प्रस्तावित यह संयत्र दुनिया के सबसे बड़े संयंत्रों मे से एक होगा तथा परमाणु विघटन और विकिरण से यहाँ न सिर्फ़ स्थानीय लोगों पर खतरा मंडरा रहा है बल्कि एक बड़े दायरे में आने वाले जनजीवन एवं पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़गा। जिससे बचा जाना बहुत संदिग्ध दिखाई दे रहा है।
सामाजिक कार्यकर्ता एवं वैज्ञानिक डॉ़ विवेक मोंटेरो का कहना है कि जापान के फुकुशिमा के हादसे से सबक लेकर भारत सरकार को अपनी परमाणु ऊर्जा नीति पर पुनर्विचार करना चाहिए। आरोप तो यहाँ तक है कि वैश्विक परमाणु सप्लायरों के दबावों के तहत सरकार जैतापुर परियोजना पर अंड़ी हुई है। महाराष्ट्र सरकार भले ही केन्द्र को आश्वस्त कर रही हो कि स्थानीय नागरिकों के संदेह को दूर करके उन्हे मना लिया जाएगा किंतु परमाणु संयंत्रों की स्थापना के समय तक तो यह ठीक लगता है परंतु भविष्य में होनेवाले हादसों और मनुष्यों पर उनके प्रभाव नहीँ पड्ने की गारंटी लेने के लिए शायद ही कोई तैयार दिखता हो। 1945 के हिरोशिमा-नागासाकी तथा 1986 के चेर्नोबिल हादसे के बाद जापान और यूक्रेन (सोवियतसंघ) सरकारों ने भविष्य के लिए सावधानी और सुरक्षा उपाय अवश्य सोंचे होंगे लेकिन फुकुशिमा फिर हमारे सामने है। फुकुशिमा से फैले विकिरण से पूरी दुनिया सकते में आ गई है। एक बार फिर विकिरण के प्रभाव के कारण बरसों तक नारकीय जीवन की भयानक आशंका से लोगों की साँसें थम गर्ईं हैं। जापान के हालात देखते हुए अनेक देशों ने अपने परमाणु कार्यक्रम स्थगित कर दिए हैं।
परमाणु प्रोजेक्टोँ से प्रभावित लोगों के कल्याण एवं शांति के लिए कार्य करनेवाले संगठन के सक्रिय कार्यकर्ता अनिल चौधरी तो बिजली उत्पादन के लिए परमाणु परियोजना की आवश्यकता पर ही प्रश्न चिन्ह लगाते हैं। विकिरण के खतरों के साथ-साथ योजना की लागत और उसकी वैज्ञानिकता पर भी सोंचें तो जैतापुर मे प्रोजेक्ट लाना नितांत अविवेकपूर्ण कहा जाना चाहिए । बिजली संयंत्र में टर्बाईन चलाने हेतु केवल 600 युनिट ऊष्मा की जरूरत होती है किंतु परमाणु विघटन से लगभग 20000 से अधिक युनिट ऊर्जा पैदा होती है। 600 युनिट के स्तर तक वापिस लाने के लिए शीतलीकरण हेतु कई गैलन पानी की आवश्यकता पड़ती है। अमूल्य पानी की ऐसी बरबादी क्या उचित होगी जबकि टर्बाईन चलाने हेतु आवश्यक 600 युनिट ऊष्मा के लिए अन्य कई विकल्प सहज उपलब्ध हैं। संयंत्र की स्थापना में जितना खर्च आता है उससे कई गुना अधिक विपरीत परिस्थितियों मे उसके समापन, उससे मुक्त होने मेँ होता है। क्या उस स्थिति की आवश्यकताओं के लिए अपनी क्षमताओं पर सरकार ने पूरी तरह विचार कर लिया है? चेर्नोबिल के समय वहां इतनी तैयारी और साधन थे कि एक एटमबम से निकलने वाले विकिरण से सौ गुना ज्यादा प्रभावी प्रकोप से लड़ पाए। लेकिन हम इस संदर्भ में पूरी तरह अभी आश्वस्त नही हो सकते।
आणविक प्रदूषण अन्य प्रदूषणों से बहुत अलग है। धूल,धुँआ ,कचरा आदि दिखाई देते हैं,इनके प्रभाव के लक्षण हमें महसूस होते हैं लेकिन परमाणु विकिरण निराकार है इसे महसूस नहीं किया जा सकता।यह प्रवेश करता है और युगों तक बना रहता है।मानव जींस में पहुँचकर आनुवँशिक रोगों के रूप में परिवर्तित हो कर अनेक पी़ढियों की त्रासदी बन जाता है। लगभग अमरता का वरदान प्राप्त परमाणु कचरा अपने ही निर्माता को नष्ट करने पर उतारू हो जाता है। मनुष्य और उसके जीवन से परमाणु कचरा अपने ही निर्माता को नष्ट करने पर उतारू हो जाता है। मनुष्य और उसके जीवन से जुड़ी हरेक वस्तु को विकिरण प्रभावित करके मुश्किलें पैदा कर देता है। कचरे का प्रबंधन इतना कठिन होता है कि स्टील के कनटेनरों में बंद कर सीमेंटीकरण करके जमीन में गाड़ देने के बावजूद विकिरण होना जारी रहता है। रिपोर्टों के अनुसार चेर्नोबिल में32 लोगों की मौत हादसे के समय हुई थी लेकिन 6 लाख लोग रेडिएशन के शिकार हुए थे। 4 हजार लोग कैसर जैसी घातक बीमारियों से ग्रस्त होकर असमय दुनिया छोड़ गए।
हम सहज सोच सकते हैं कि हमारे पास इस भस्मासुर से मुक्ति के कितने कारगर साधन और हिम्मत है। भोपाल के यूनियन कार्बाइड परिसर में फैले घातक रासायनिक कचरे को हटाने की सुस्पष्ट योजना हम अभी तक बना नहीं पाए हैं। घटना के इतने वर्षों बाद भी हाईकोर्ट सरकार से स्पष्टीकरण के लिए निर्देशित करने को बाध्य हो रही है।
जैतापुर में परमाणु परियोजना को लेकर अब समर्थन और विरोध की राजनीति के स्वर भी सुनाई देने लगें हैं। सच तो यह है कि परियोजना के लिए जनता का मन जीतना जरूरी होगा। कहीं खोट दिखाई देती है तो मन तो टूटेगा ही।जरा ध्यान रहे इस बात का।
ब्रजेश कानूनगो
503,गोयल रिजेंसी ,चमेली पार्क
कनाडिया रोड ,इंदौर-18
503,गोयल रिजेंसी ,चमेली पार्क
कनाडिया रोड ,इंदौर-18