लेख
आचरण और मानस में भी लिखना होगा ‘दिव्यांग’
ब्रजेश कानूनगो
जब मैंने पहले पहल एयरपोर्ट के दर्शन किये थे तभी से एक अंगरेजी शब्द
मेरे लिए बड़ा चुनौतीपूर्ण बना हुआ था, इसका कोई ठीक और संतोषजनक हिन्दी पर्याय अब
तक नहीं मिल सका. वह शब्द है ‘स्पेशली चेलेंजड पर्सन’. एयरपोर्ट पर बने सुविधागृह
परिसर में विकलांग लोगों के उपयोग के लिए बने टॉयलेट की दीवार पर हिन्दी में ‘केवल
विकलांगों के लिए’ तथा अंगरेजी में ‘फॉर स्पेशली चेलेंजड पर्सन्स’ लिखा हुआ देखा था.
शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के लिए अंगरेजी के पर्यायवाची के सामने मुझे हिन्दी का
‘विकलांग’ शब्द कमजोर और अपमानजनक लगता रहा है. जबकि अंगरेजी के ‘स्पेशली चेलेंजड’
शब्द में मुझे उस विशेष व्यक्ति के अक्षमता के विरुद्ध संघर्षशील होने के सन्दर्भ
में प्रशंसा और सम्मान का भाव निहित दिखाई देता है. जहां तक ‘विकलांग’ शब्द के
शब्दकोशीय अर्थ की बात है उसका सन्दर्भ शरीर के किसी अंग के क्षतिग्रस्त अथवा
अक्षम होने से ही निकलकर आते हैं जैसे-अपंग, अपाहिज, असमर्थ, विकलांग या भग्नांग
आदि. और भी इसी तरह के समानार्थी शब्द चलन में हैं. दूसरी तरफ अंग विशेष की
अक्षमता के अनुसार भी कुछ शब्द प्रयोग में लिए जाते रहे हैं मसलन नेत्रहीन, लंगड़ा,
कुबड़ा आदि. इनमे व्यक्ति विशेष के लिए किसी सम्मानजनक उपमा का सृजन दिखाई नहीं
देता है. दूसरी तरफ इनके लगातार प्रयोग के कारण भी ये कभी-कभी गाली की तरह सम्बंधित व्यक्ति को कष्ट पहुंचाने के अपरोक्ष
कारक बनते रहे हैं.
यह बहुत संतोष और खुशी की बात है कि देश के प्रधानमंत्री जैसे प्रभावी
व्यक्ति के मन में भी यह बात उठी है और उन्होंने साल 2015 के अंत में रेडियो पर
अपने मन की बात करते हुए कहा कि विकलांगों के लिए अब ‘दिव्यांग’ जैसा शब्द प्रयोग
किया जाना चाहिए. प्रधानमंत्री की इस भावना की हर कोई प्रशंसा करेगा और करना भी
चाहिए. उनके सुझाए शब्द ‘दिव्यांग’ से
मेरी समस्या का निदान तो नहीं हुआ मगर एक
रास्ता जरूर निकल रहा है. अभी इस पर थोड़ा और काम जरूर किया जाना चाहिए.
दिव्याग में ‘दिव्य’ का अर्थ यहाँ
दैविक और देवीय ,पारलौकिक के साथ-साथ अति सुन्दर के रूप में आया है. ‘दिव्यचक्षु’
शब्द का प्रयोग ‘नेत्रहीन’ व्यक्ति के लिए किया भी जाता रहा है. महाभारत के पात्र
’संजय’ को ‘दिव्यदृष्टि’ प्राप्त थी और वह विशेष रूप से प्राप्त शक्ति के कारण
समूचा युद्ध महाप्रासाद में बैठकर देखने में समर्थ था. इस परिप्रेक्ष्य में
‘दिव्यांग’ विकलांग व्यक्तियों में अतिरिक्त किसी दिव्य शक्ति की उपस्थिति के विश्वास
से सटीक कहा जा सकता है और सम्मानजनक भी है. मगर यहाँ मुझे राष्ट्रपिता महात्मा
गांधी की पहल भी सहज याद हो आती है. बापू ने सफाई कर्मियों को सम्मानजनक संबोधन
हेतु ‘हरिजन’ जैसे शब्द को आगे बढाया था. समाज में उपेक्षित वर्गों के निम्नवर्गीय
लोगों को उन्होंने सीधे ‘हरि’ अर्थात प्रभु से जोड़कर ऊंचे स्थान पर लाने का प्रयास
किया था. इसका कुछ अवधि तक असर भी हुआ, लेकिन यह कटु सत्य स्वीकारना ही होगा कि अब
यह शब्द भी अपेक्षित रूप से लोगों को उतनी गरिमा और सम्मान नहीं दे पा रहा.
सच तो यह है कि हमें देखना होगा कि ‘दिव्यांग’ शब्द के इस्तेमाल से संदर्भित
व्यक्तियों की सामाजिक-सांस्कृतिक और
आर्थिक स्थितियों या कठिनाइयों में कितना परिवर्तन हो सकेगा. उनके साथ हमारे व्यवहार
में किसी अच्छे बदलाव को कैसे सुनिश्चित किया जा सकता है. उनके लिए हम कितनी जल्दी
कार्यालयों में एक्सिलेटरों की व्यवस्था कर सकेंगें. कितने समय में लोक परिवहन की
बसों में लो फ्लोवर और रेलवे स्टेशनों पर व्हील चेयरों की समुचित उपलब्धता हासिल की
जा सकेंगी.
शब्दकोश में विकलांगों के लिए एक और पर्यायवाची शब्द जोड़ने और सरकारी
कागजों या सुविधागृहों की दीवारों पर ‘विकलांग’ के स्थान पर ‘दिव्यांग’ लिख देने
भर से प्रधानमंत्री जी की सदइच्छा और निर्मल भावना का कार्यान्वयन संभव नहीं हो सकता.
कुछ दिव्य शब्द समाज को अपने मानस पटल पर भी विकलांगों के लिए लिखना जरूरी होंगे.
ब्रजेश कानूनगो
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