Friday, September 21, 2012

तुम मुझे यूँ भुला ना पाओगे


व्यंग्य
तुम मुझे यूँ भुला ना पाओगे
ब्रजेश कानूनगो

समझदार लोग कहते आए हैं कि याद रखना उतना जरूरी नही जितना कि भूल जाना। यदि आप चाहते हैं कि सफर की तमाम मुश्किलों और पथ की दुर्गमता के बावजूद जिन्दगी की गाडी सहज चलती रहे तो जरूरी होगा कि पीछे रह गई बातों को भुलाते जाएँ। हालांकि सभी चाहते हैं कि वे स्वस्थ रहें। तन और मन पर किसी भी पुरानी या गुजरी हुई बात का बोझ विपरीत प्रभाव न डाले इसलिए नई घटनाओं की रोशनी से विटामीन और ऊर्जा प्राप्त करने की भरपूर कोशिश हम करते रहते हैं। सरकार भी यही चाहती रही है। यही कारण है कि एक घोटाले के बाद दूसरा घोटाला कर दिया जाता है ताकि पिछले वाले को जनता भुला सके। कब तक आदर्श, कब तक 2जी, कब तक कोयला, छोडिए भी अब पुराना। नए में मन रमाइए अपना।

भूलने-बिसराने का एक ऐतिहासिक उदाहरण हमारे यहाँ स्मृति कोश में बहुत स्मरणीय स्थान रखता है। प्रणय प्रसंग के बाद सम्राट दुष्यंत अपनी प्रेयसी शकुंतला को बिसरा देते हैं। लेकिन वह मुद्रिका ही थी जिसे देखते ही सम्राट को वन कन्या के साथ बिताए वे मधुर पल दोबारा याद आ जाते हैं।

याद दिलाने के लिए ऐसी मुद्रिकाओ के दर्शन अक्सर हमें करवाए जाते रहे हैं। बोफोर्स भी एक ऐसी ही मुद्रिका है जो जनता द्वारा भुला दिए गए अतीत के प्रसंगों की याद ताजा करती रहती है। कभी विपक्ष इस मुद्रिका को सामने दिखाकर सरकार की स्मृति को दुरुस्त करता है तो कभी खुद गृहमंत्री  मजाक-मजाक में मुद्रिका से खेल बैठते हैं।

बेचारी जनता तो याद रखना ही नही चाहती इन प्रसंगों को लेकिन नेता हैं कि भूलने ही नही देते। बार-बार याद दिला देते हैं कि भाई इस देश में इमर्जेंसी भी लगी थी और मज्जिद भी ध्वस्त की गई थी। गोधरा में जिन्दा जला दिए गए थे इंसान और भोपाल के जहर ने कइयों की जानें और रोशनी छीन ली थी। हम तो चाहते हैं कि जिस तरह बोफोर्स को भूल गए वैसे ही 2जी और कोयला भी भूल जाएँ। कॉमन वेल्थ गेम्स के खेलों और घोटाले के रेकार्ड्स को विस्मृत कर दें। विद्वानों ने तो कई बार दुहराया है कि ‘बीती ताही बिसार दे, आगे की सुधि लेय।’  लेकिन दिल है कि मानता नही। रह रह कर याद की मरोड उठने लगती है। जिन्हे हम भूलना चाहें वे अक्सर याद दिलाए जाते हैं।

ब्रजेश कानूनगो
503,गोयल रिजेंसी,चमेली पार्क, कनाडिया रोड,इन्दौर-18